“भाजपा दरवाजा बंद करेगी तो…” — संजय निषाद का गठबंधन को लेकर बड़ा बयान
लखनऊ, 28 अगस्त 2025।
उत्तर प्रदेश के मत्स्य मंत्री और निषाद पार्टी प्रमुख डॉ. संजय निषाद ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बयान देते हुए कहा कि अगर बीजेपी को लगता है कि निषाद पार्टी से कोई लाभ नहीं हो रहा है, तो वह गठबंधन तोड़ सकती है। लेकिन ऐसा होने पर वे बिना किसी हिचकिचाहट के नया रास्ता तलाशने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सहयोगी दलों से होने वाला समर्थन बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाता है। इस बयान ने गठबंधन के भीतर बढ़ रहे दबाव और राजनीतिक गतिशीलता को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है।
बयान की पृष्ठभूमि और दृश्यमान तनाव
संजय निषाद ने कहा कि अगर बीजेपी को निषाद पार्टी से लाभ नहीं लगता है, तो वह गठबंधन छोड़ दे। उन्होंने यह बात गोरखपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही, जिसमें उन्होंने यह भी जोड़ा कि “सहयोगियों की ताकत को कम नहीं आंकना चाहिए”। उन्होंने 2018 की जीत का उदाहरण देते हुए कहा कि बीजेपी अकेले नहीं जीती — यह सफलता “सभी सहयोगियों की साझी ताकत” का परिणाम थी।
उल्लेखनीय है कि यह बयान ऐसे समय में आया है, जब सहयोगी दलों और बीजेपी के बीच मतभेद सार्वजनिक होते दिख रहे हैं — खासकर निषाद समाज को अनुसूचित जाति (SC) में शामिल करने की मांग पर उठा विवाद इस दरार को और गहरा कर रहा है।
राजनीतिक इश्शूज़: निषादों का आरक्षण और गठबंधन की मजबूती
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आरक्षण की मांग: निषाद पार्टी प्रमुख ने कहा है कि SC में शामिल होने की मांग पर निरंतर संघर्ष किया जा रहा है। यह भाजपा की जिम्मेदारी है कि सहयोगी के रूप में यह मांग पूरी करे, वरना आगामी 2027 विधानसभा चुनाव में स्थिति कठिन हो सकती है।
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फिशिंग समुदाय की पहचान: उन्होंने अपने समुदाय की औपचारिक पहचान पर जोर देते हुए कहा, “हमारी पार्टी निषाद समुदाय की आवाज़ है। हमारा खून यहां तक वैश्विक पूंजी तक फैला है, और हम उनके हितों का प्रतिनिधित्व करने में पीछे नहीं हटेंगे।”
राजनीतिक विश्लेषण: गठबंधन की दिशा और 2027 चुनाव
अगले वर्ष होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव 2027 से पहले यह बयान बेहद संवेदनशील है। बीजेपी और सहयोगी दलों के बीच अप्रत्यक्ष तनाव का संकेत सियासी धरातल पर लगातार सतर्कता का माहौल बनाए रखता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि सहयोगी दलों जैसे निषाद पार्टी, सुभासपा, और अपना दल के साथ बेहतर तालमेल बनाए रखना बीजेपी के लिए मार्च 2027 तक रणनीतिक चुनौती साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
संजय निषाद के बयान ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन की कहानी सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि हर राजनीतिक मोड़ पर नए समीकरणों से भरी हुई है। BJP को अब यह निर्णय लेना होगा कि वह सहयोगी दलों की मांगों को हल्के में लेने के बजाए उन्हें वाकई में सुनने को तैयार है या नहीं। अगर सहयोगियों को नजरअंदाज किया गया, तो राजनीतिक परिदृश्य एक नई दिशा की ओर अग्रसर होता दिखाई दे सकता है।