नाग पंचमी का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से नाग देवताओं की पूजा के लिए समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन नागों की पूजा करने से जीवन में सर्प भय समाप्त होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। भारत में नाग पंचमी बड़े उत्साह से मनाई जाती है, खासतौर पर उत्तर भारत, महाराष्ट्र, बंगाल और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में इसका विशेष महत्व होता है।
इस दिन लोग व्रत रखते हैं, नागों की तस्वीर या प्रतिमा की पूजा करते हैं और उन्हें दूध अर्पित करते हैं। पारंपरिक तौर पर महिलाएं नाग देवता की कथा सुनती हैं और सर्पों को फूल, हल्दी, दूध और कुश अर्पित करती हैं। गांवों में मिट्टी से नाग की मूर्ति बनाकर उसकी विधिवत पूजा की जाती है।
नाग पंचमी का व्रत सूर्योदय से पूर्व शुरू होता है और पूजा के बाद पारण (व्रत खोलना) किया जाता है। लेकिन कई बार लोग पारण का सही समय नहीं जानते और समय से पहले या बहुत देर से पारण कर लेते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यदि व्रत पारण सही समय पर न किया जाए तो व्रत का फल अधूरा रह जाता है।
पंडितों के अनुसार, नाग पंचमी के दिन पूजा मुहूर्त प्रातःकाल 5:50 AM से लेकर 8:30 AM तक रहेगा (समय स्थानानुसार भिन्न हो सकता है)। व्रत का पारण पूजा के बाद और पंचमी तिथि रहते ही करना उचित माना गया है।
नाग देवता को प्रसन्न करने से व्यक्ति को संतान सुख, सुख-समृद्धि और रोगों से मुक्ति मिलती है। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उन्हें इस दिन विशेष पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से दोष का प्रभाव कम होता है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
कुछ लोग अज्ञानता में नागों को दूध पिलाने के लिए जीवित सांपों को पकड़ते हैं या परेशान करते हैं। यह न केवल गैरकानूनी है बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी अनुचित है। सांपों को कष्ट देने से पुण्य की जगह पाप लगता है।
इसलिए नाग पंचमी के दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा करें, व्रत का पालन करें और व्रत पारण का समय न चूकें। इस प्रकार आप अपने जीवन में शुभता और सुख-समृद्धि ला सकते हैं।