जन्माष्टमी 2025: क्यों काटा जाता है आधी रात को डंठल वाला खीरा? जानें इस अनोखी परंपरा का रहस्य
हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का पर्व अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जाता है, जो भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को आधी रात को हुआ था। देशभर में इस पर्व को लेकर कई परंपराएं निभाई जाती हैं, जिनमें से एक है आधी रात को डंठल वाला खीरा काटना। यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई गहरे अर्थ भी छिपे हैं।
खीरा काटने की परंपरा का महत्व
जन्माष्टमी के दिन खीरे को माता देवकी के गर्भ का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, उस समय उन्होंने माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया और तत्काल ही जेल से बाहर निकल गए। इस घटना की स्मृति में आधी रात को डंठल वाला खीरा काटा जाता है। इसे काटते समय खीरे के डंठल वाले हिस्से को सावधानी से अलग किया जाता है और फिर खीरे को फाड़ा जाता है, जो यह दर्शाता है कि देवकी का गर्भ खुल गया और श्रीकृष्ण ने जन्म लिया।
क्यों चुना गया खीरा ही?
खीरा एक प्राकृतिक रूप से ठंडक देने वाला फल है। धार्मिक दृष्टि से खीरे की प्रकृति सात्विक मानी जाती है, और जन्माष्टमी जैसे पवित्र अवसर पर सात्विक चीजों का विशेष महत्व होता है। इसके अलावा खीरे का आकार गर्भ के समान माना जाता है, इसलिए इसे प्रतीकात्मक रूप में उपयोग किया जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
इस परंपरा के पीछे स्वास्थ्य संबंधी कारण भी हैं। सावन और भाद्रपद के महीने में शरीर में गर्मी बढ़ जाती है। खीरे का सेवन करने से शरीर में ठंडक बनी रहती है और डिहाइड्रेशन का खतरा कम हो जाता है। इसलिए इसे प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है।
खीरा काटते समय नियम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खीरा काटते समय आधी रात का समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी समय श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। खीरे को काटते समय मन में भगवान का नाम लिया जाता है और उनके जन्मोत्सव का उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान खीरे को चाकू से नहीं, बल्कि हाथ से फाड़ने की परंपरा भी कई जगहों पर निभाई जाती है।