बिहार में प्रियंका गांधी का ‘ट्रिपल-एम फॉर्मूला’: क्या महागठबंधन की चुनाव एक्सप्रेस को मिलेगी रफ्तार?
नई दिल्ली/पटना।
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीतियाँ तेज़ करते नज़र आ रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पहली बार राज्य में सक्रिय भूमिका निभाते हुए महागठबंधन की चुनावी रणनीति को एक नया रंग देने की कोशिश की है। उनकी हालिया ‘वोटर अधिकार यात्रा’ और इसके तहत पेश किया गया ‘ट्रिपल-एम फॉर्मूला’ अब चर्चा का केंद्र बन चुका है। इस फॉर्मूले का मकसद है—मिथिलांचल, मंदिर और महिला वोटर्स को साधना।
ट्रिपल-एम फॉर्मूला: तीन ‘एम’ की पूरी कहानी
प्रियंका गांधी की चुनावी रणनीति के तीन अहम स्तंभ हैं:
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मिथिलांचल को साधना
बिहार का मिथिलांचल इलाका लंबे समय से बीजेपी और जेडीयू का मज़बूत गढ़ माना जाता है। 2020 के विधानसभा चुनावों में एनडीए ने यहां शानदार प्रदर्शन कर महागठबंधन को पीछे छोड़ दिया था। कांग्रेस और राजद दोनों ही इस क्षेत्र में अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सके थे। प्रियंका गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की शुरुआत मिथिलांचल से करना इस बात का संकेत है कि अब कांग्रेस इस गढ़ को भेदने की पूरी कोशिश में है।
मिथिलांचल न केवल राजनीतिक दृष्टि से अहम है बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर भी इसे विशेष पहचान मिली हुई है। यहां सीतामढ़ी, दरभंगा और मधुबनी जैसे इलाके आते हैं, जिनकी अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत है। -
मंदिर की राजनीति
प्रियंका गांधी ने सीतामढ़ी स्थित जनकी मंदिर में माथा टेक कर यात्रा का शुभारंभ किया। यह कदम सिर्फ धार्मिक आस्था से जुड़ा नहीं था, बल्कि इसमें एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी छिपा था।
पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने मंदिर और धार्मिक स्थलों की राजनीति के जरिए हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करने में सफलता पाई है। कांग्रेस पर अक्सर “तुष्टिकरण की राजनीति” का आरोप लगता रहा है। ऐसे में प्रियंका गांधी का यह कदम कांग्रेस की छवि बदलने और यह संदेश देने की कोशिश माना जा रहा है कि पार्टी भी धार्मिक आस्था का सम्मान करती है और सांस्कृतिक धरोहर को अपनाती है। -
महिला वोटर्स पर फोकस
बिहार की राजनीति में महिला वोटर्स की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है। खासकर 2005 के बाद से जब नीतीश कुमार ने महिला मतदाताओं को शराबबंदी, साइकिल योजना, पक्का मकान और कई सामाजिक योजनाओं के जरिए जोड़ा, तब से महिलाओं का वोट शेयर काफी बढ़ा है।
कांग्रेस और महागठबंधन इस बार इस वोट बैंक पर विशेष फोकस कर रहे हैं। प्रियंका गांधी का महिलाओं से सीधा संवाद और महिला मुद्दों पर जोर देना इस रणनीति का हिस्सा है। कांग्रेस का मानना है कि महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके मुद्दों को चुनावी विमर्श का केंद्र बनाने से महागठबंधन को बढ़त मिल सकती है।
महागठबंधन की उम्मीदें और चुनौतियाँ
महागठबंधन को उम्मीद है कि प्रियंका गांधी के इस फॉर्मूले से न केवल कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ेगा बल्कि इसका फायदा पूरे गठबंधन को मिलेगा। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पहले से ही अपने-अपने तरीके से सरकार पर हमलावर हैं। अब प्रियंका गांधी की सक्रियता से यह संदेश दिया जा रहा है कि कांग्रेस सिर्फ सहयोगी दल नहीं, बल्कि गठबंधन की मज़बूत खिलाड़ी भी है।
हालांकि, चुनौतियाँ कम नहीं हैं।
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मिथिलांचल में बीजेपी-जेडीयू की गहरी पैठ है और वहां जातीय समीकरण महागठबंधन के खिलाफ जाते रहे हैं।
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मंदिर की राजनीति करने पर कांग्रेस के एक वर्ग का मानना है कि इससे उसकी धर्मनिरपेक्ष छवि प्रभावित हो सकती है।
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महिला वोट बैंक को साधने के लिए ठोस घोषणाएँ और योजनाएँ सामने लानी होंगी, केवल प्रतीकात्मक अपील से काम नहीं चलेगा।
विश्लेषण: क्या ‘ट्रिपल-एम’ रणनीति सफल होगी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रियंका गांधी का यह कदम कांग्रेस की छवि बदलने की एक कोशिश है।
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मिथिलांचल का महत्व यह है कि यहां की सीटें जीतने वाला दल पूरे बिहार में मजबूत स्थिति बना लेता है।
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मंदिर पर माथा टेकने से कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि वह केवल “विकास” की राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि आस्था और संस्कृति से भी जुड़ी है।
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महिला वोटर्स को आकर्षित करने के लिए प्रियंका का चेहरा उपयुक्त माना जा रहा है क्योंकि उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी महिलाओं को संबोधित करने की रणनीति अपनाई थी।
हालांकि, विपक्ष का मानना है कि यह रणनीति केवल “राजनीतिक दिखावा” है और इससे जमीनी हकीकत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बीजेपी नेताओं ने तंज कसते हुए कहा है कि कांग्रेस न तो बिहार में संगठन खड़ा कर पाई है और न ही जनाधार, ऐसे में सिर्फ मंदिर दर्शन और भाषणों से जनता प्रभावित नहीं होगी।
निष्कर्ष
प्रियंका गांधी का ‘ट्रिपल-एम फॉर्मूला’ निश्चित रूप से चर्चा में है और इससे यह साफ हो गया है कि कांग्रेस अब बिहार की राजनीति में बैकफुट पर नहीं रहना चाहती। हालांकि, यह रणनीति कितनी सफल होगी, इसका जवाब चुनावी नतीजे ही देंगे। लेकिन इतना तय है कि इस कदम से महागठबंधन को नई ऊर्जा मिली है और बिहार की राजनीति में प्रियंका गांधी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।