अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी को बड़ा झटका लगा है। अमेरिका की फेडरल अपील कोर्ट ने शुक्रवार को उन आयात शुल्कों (टैरिफ) पर रोक लगा दी है, जिन्हें ट्रंप प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) के नाम पर लागू किया था। अदालत का कहना है कि यह फैसला कांग्रेस के अधिकार क्षेत्र में आता है और राष्ट्रपति का इस पर एकतरफा निर्णय लेना संवैधानिक दायरे से बाहर है।
पृष्ठभूमि
ट्रंप प्रशासन ने 2018 में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इस्पात (Steel) और एल्यूमीनियम (Aluminium) समेत कई उत्पादों पर भारी आयात शुल्क लगाया था। इसका उद्देश्य चीन और अन्य देशों से आयात को नियंत्रित करना और अमेरिकी उद्योगों को बढ़ावा देना था।
हालाँकि इस नीति के लागू होने के बाद अमेरिका के व्यापारिक साझेदार देशों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया। यूरोपीय संघ, चीन, कनाडा और भारत ने इसे संरक्षणवाद (Protectionism) की नीति बताया और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) में भी शिकायत दर्ज कराई।
अदालत का तर्क
फेडरल अपील कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपति ने “नेशनल सिक्योरिटी” का हवाला देकर टैरिफ लागू किए, लेकिन वास्तविकता में यह फैसला आर्थिक नीति से जुड़ा है। इस पर अधिकार केवल अमेरिकी कांग्रेस को है, न कि राष्ट्रपति को।
कोर्ट ने कहा,
“संविधान के तहत कांग्रेस ही वह निकाय है जो टैरिफ और आयात शुल्क से संबंधित नीतियाँ तय कर सकती है। राष्ट्रपति का यह कदम अधिकार क्षेत्र से बाहर है।”
अमेरिकी उद्योगों पर असर
विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रंप की टैरिफ नीति से अमेरिकी उद्योगों को अपेक्षित लाभ नहीं मिला।
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इस्पात और एल्यूमीनियम के दाम घरेलू स्तर पर बढ़ गए।
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ऑटोमोबाइल और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों पर उत्पादन लागत बढ़ी।
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अमेरिका के निर्यातकों को भी दूसरे देशों से प्रतिकारात्मक टैरिफ (Retaliatory Tariffs) झेलने पड़े।
राजनीतिक प्रभाव
यह फैसला अमेरिकी राजनीति में भी बड़ा मुद्दा बन सकता है। ट्रंप ने हमेशा “अमेरिका फर्स्ट” की नीति पर जोर दिया और टैरिफ को देश की सुरक्षा और नौकरियों की रक्षा के लिए आवश्यक बताया। अदालत का यह निर्णय ट्रंप के चुनावी एजेंडे को कमजोर कर सकता है।
डेमोक्रेट्स ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि यह “राष्ट्रपति की मनमानी” पर रोक लगाने वाला कदम है। वहीं रिपब्लिकन खेमे में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस फैसले से अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदार देशों के बीच तनाव कम हो सकता है। भारत और यूरोपीय संघ पहले से ही इन टैरिफ के खिलाफ थे। WTO में चल रही कानूनी प्रक्रिया पर भी इसका असर पड़ेगा।
अर्थव्यवस्था पर असर
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि टैरिफ पर रोक लगने से अमेरिकी बाजारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और आयातित उत्पादों के दाम कम हो सकते हैं। इससे आम उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। हालाँकि घरेलू उद्योगों को इस फैसले से नुकसान का डर भी है, क्योंकि उन्हें अब विदेशी कंपनियों से सीधे मुकाबला करना होगा।
आगे क्या?
अब मामला अमेरिकी कांग्रेस के पाले में आ गया है। यदि कांग्रेस चाहे तो नए कानून बनाकर टैरिफ को वैध बना सकती है, लेकिन मौजूदा स्थिति में राष्ट्रपति के पास इस पर सीधे निर्णय लेने का अधिकार नहीं होगा।
निष्कर्ष
फेडरल अपील कोर्ट का यह फैसला केवल ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी के लिए झटका नहीं है, बल्कि यह अमेरिकी संविधान और शक्तियों के बंटवारे पर भी एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है। यह स्पष्ट करता है कि आर्थिक नीतियों से जुड़े फैसले संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और कार्यपालिका उन्हें सुरक्षा के नाम पर लागू नहीं कर सकती।