Supreme Court issues notice to Centre and states on flood crisis — सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश में लगातार बिगड़ते बाढ़ संकट पर सख्त रुख अपनाया। अदालत ने कहा कि हर साल आने वाली बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि अवैध पेड़ कटाई और पर्यावरणीय असंतुलन का नतीजा भी है। अदालत ने केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है।
बाढ़ और अवैध पेड़ कटाई पर चिंता
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि “पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और अवैध खनन जैसी गतिविधियों ने नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित किया है। इसका सीधा असर बाढ़ की तीव्रता और आवृत्ति पर पड़ा है।” अदालत ने यह भी जोड़ा कि पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी नागरिकों के जीवन और संपत्ति दोनों के लिए खतरा बन गई है।
जनहित याचिका से हुई सुनवाई
यह सुनवाई एक जनहित याचिका (PIL) पर हुई जिसमें दावा किया गया था कि राज्यों में अवैध पेड़ कटाई और जंगलों की लगातार सफाई ने पारिस्थितिकी तंत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि इसका सीधा संबंध बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश ने कहा,
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“हम हर साल देखते हैं कि बाढ़ की वजह से हजारों लोग विस्थापित हो रहे हैं।
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सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।
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लेकिन इस पर सरकारें केवल राहत शिविर और मुआवजा बांटने तक सीमित रह जाती हैं।”
अदालत ने सवाल किया कि क्यों केंद्र और राज्य सरकारें अवैध पेड़ कटाई पर रोक लगाने में नाकाम रही हैं।
सरकारों से मांगा जवाब
अदालत ने केंद्र और राज्यों को चार हफ्ते के भीतर यह बताने को कहा है:
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अवैध पेड़ कटाई रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं?
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बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में दीर्घकालिक समाधान की क्या योजना है?
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नदियों और जंगलों की सुरक्षा के लिए क्या नीति बनाई जा रही है?
पर्यावरण विशेषज्ञों की राय
पर्यावरणविदों का मानना है कि नदियों के किनारे के पेड़ और जंगल बाढ़ नियंत्रण में प्राकृतिक ढाल का काम करते हैं। इनके कट जाने से नदियाँ बेपरवाह होकर बस्तियों और शहरों में घुस आती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि “बाढ़ को केवल प्राकृतिक आपदा कहकर नहीं टाला जा सकता। यह मानवजनित संकट है जिसमें हमारी नीतियों और विकास के मॉडल की भी बड़ी भूमिका है।”
हालिया बाढ़ की स्थिति
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इस साल असम, बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली समेत कई राज्यों में बाढ़ की गंभीर स्थिति रही।
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लाखों लोग विस्थापित हुए और हजारों घर जलमग्न हो गए।
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गंगा और यमुना जैसी नदियों का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर चला गया।
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दिल्ली में तो सचिवालय और श्मशान घाट तक डूब गए, जिससे राजधानी की तैयारियों पर भी सवाल खड़े हुए।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस पर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा। कांग्रेस ने कहा कि “सरकार सिर्फ दिखावे के लिए ग्रीन एनर्जी की बात करती है लेकिन जमीन पर जंगल बचाने के लिए कुछ नहीं करती।” वहीं बीजेपी नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार लगातार राज्यों को मदद और गाइडलाइन देती रही है, लेकिन कई राज्य सरकारें कार्रवाई में सुस्त हैं।
अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सरकारें संतोषजनक जवाब देने में विफल रहीं तो अदालत खुद एक स्वतंत्र समिति बनाकर जांच कराएगी। अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, Supreme Court issues notice to Centre and states on flood crisis केवल एक कानूनी कार्रवाई नहीं बल्कि सरकारों के लिए सख्त चेतावनी भी है। अदालत ने साफ कर दिया है कि पर्यावरणीय उपेक्षा और अवैध गतिविधियों की वजह से आम जनता को आपदा का सामना करना पड़ रहा है। अब देखना होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें इस चुनौती से निपटने के लिए क्या ठोस कदम उठाती हैं।