सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए चुनाव आयोग (Election Commission of India) से कहा है कि बिहार SIR (Special Identification Register) प्रक्रिया में आधार कार्ड के साथ-साथ 11 अन्य वैध पहचान दस्तावेजों को भी स्वीकार किया जाए। अदालत ने यह फैसला उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुनाया जिनमें कहा गया था कि केवल आधार कार्ड को अनिवार्य करना नागरिकों के मताधिकार और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
क्या है मामला?
बिहार में मतदाता सूची को अद्यतन करने और विशेष पहचान पंजीकरण (SIR) की प्रक्रिया शुरू की गई है। चुनाव आयोग चाहता था कि इस प्रक्रिया में केवल आधार कार्ड को पहचान के मुख्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए। लेकिन इस कदम पर कई सामाजिक संगठनों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाए। उनका कहना था कि देश में अब भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके पास आधार कार्ड नहीं है, ऐसे में उनकी वोटिंग अधिकार से वंचित होने की संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा:
“भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में किसी भी नागरिक को केवल इस कारण मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता कि उसके पास आधार कार्ड नहीं है। चुनाव आयोग को मतदाता की पहचान के लिए अन्य मान्य दस्तावेजों को भी स्वीकार करना होगा।”
कौन-कौन से दस्तावेज होंगे मान्य?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि आधार के अलावा निम्नलिखित 11 दस्तावेज भी बिहार SIR प्रक्रिया में मान्य होंगे:
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पासपोर्ट
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ड्राइविंग लाइसेंस
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पैन कार्ड
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वोटर आईडी कार्ड
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मनरेगा जॉब कार्ड
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सरकारी कर्मचारी का पहचान पत्र
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पेंशन दस्तावेज
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बैंक पासबुक (फोटो सहित)
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राज्य सरकार द्वारा जारी स्मार्ट कार्ड
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स्वास्थ्य बीमा कार्ड
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शैक्षणिक संस्थानों द्वारा जारी फोटो पहचान पत्र
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने अदालत में कहा कि आधार कार्ड को मुख्य पहचान के रूप में अपनाने का उद्देश्य प्रक्रिया को पारदर्शी और एकीकृत बनाना है, लेकिन आयोग अदालत के निर्देशों का पालन करेगा। आयोग के वरिष्ठ वकील ने कहा कि इस फैसले से यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी नागरिक वोटिंग अधिकार से वंचित नहीं होगा।
विपक्ष और सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया
कई विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का स्वागत किया।
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राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने कहा कि यह फैसला गरीब और हाशिये पर खड़े वर्गों के लिए राहत है।
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कांग्रेस नेताओं ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया।
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नागरिक संगठनों का कहना है कि यह फैसला समावेशी लोकतंत्र की दिशा में बड़ा कदम है।
जनता की राय
बिहार के कई इलाकों में आम लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया।
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पटना निवासी सुरेश यादव का कहना है, “हमारे पास आधार नहीं है लेकिन पैन कार्ड और वोटर आईडी है। अब हम निश्चिंत हैं कि वोट डालने का अधिकार नहीं छिनेगा।”
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वहीं, गया की शिक्षिका सीमा कुमारी ने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट का आदेश यह दिखाता है कि आम जनता की आवाज को अनसुना नहीं किया जा सकता।”
लोकतंत्र पर असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की चुनावी प्रक्रिया पर असर डालेगा।
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पहला, यह सुनिश्चित करेगा कि किसी भी नागरिक का नाम मतदाता सूची से केवल आधार की कमी के कारण नहीं कटेगा।
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दूसरा, यह चुनाव आयोग को लचीलापन अपनाने और विभिन्न पहचान दस्तावेजों को स्वीकार करने के लिए बाध्य करेगा।
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तीसरा, इससे ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर तबके को बड़ी राहत मिलेगी।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
कई लोकतांत्रिक देशों में मतदाता पहचान के लिए बहुविकल्पीय दस्तावेजों को स्वीकार किया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह कदम वैश्विक स्तर पर भी समावेशी चुनावी प्रक्रिया की दिशा में एक अच्छा उदाहरण बनेगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। यह फैसला इस बात को दोहराता है कि लोकतंत्र में किसी भी नागरिक का मताधिकार सर्वोपरि है और इसे किसी भी हाल में छीना नहीं जा सकता। अब चुनाव आयोग के सामने चुनौती यह होगी कि वह इस आदेश को जमीनी स्तर पर लागू करे और यह सुनिश्चित करे कि हर नागरिक अपने संवैधानिक अधिकार का स्वतंत्र रूप से प्रयोग कर सके।
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