लोकसभा में हंगामा: पीएम-सीएम हटाने का बिल पेश होते ही विपक्ष ने फाड़े बिल, अमित शाह पर लगाया निशाना
लोकसभा में सोमवार को उस समय भारी हंगामा देखने को मिला जब केंद्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं को गंभीर आपराधिक मामलों में फंसने की स्थिति में हटाने से जुड़ा बिल पेश किया गया। जैसे ही गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में इस पर चर्चा शुरू की, विपक्षी दलों के सांसदों ने जोरदार विरोध किया। विरोध इतना बढ़ गया कि विपक्षी सांसदों ने बिल की प्रतियां फाड़कर सदन में फेंक दीं और कुछ सांसदों ने तो अमित शाह की ओर कागज़ भी उछाले।
विपक्ष का आक्रोश
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके और अन्य विपक्षी दलों ने बिल को “लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला” करार दिया। उनका कहना है कि यह कानून सरकार को अपने विरोधियों को निशाना बनाने का हथियार देगा।
कांग्रेस सांसदों ने कहा कि अगर यह बिल पास हो जाता है, तो सरकार झूठे मुकदमों के जरिए निर्वाचित प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को पद से हटाने का रास्ता आसान कर लेगी।
अमित शाह का जवाब
गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा:
“यह बिल किसी व्यक्ति या दल के खिलाफ नहीं है। यह कानून व्यवस्था और राजनीति में शुचिता बनाए रखने की दिशा में बड़ा कदम है। अगर कोई नेता गंभीर अपराधों में लिप्त पाया जाता है, तो लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए उसका पद छोड़ना आवश्यक है।”
उन्होंने विपक्ष से अपील की कि वे इसे राजनीतिक रंग न दें और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने में सहयोग करें।
बिल के प्रावधान
सूत्रों के अनुसार, प्रस्तावित बिल में यह प्रावधान है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई अन्य उच्च पदाधिकारी गंभीर आपराधिक आरोपों (जैसे भ्रष्टाचार, बलात्कार, हत्या या आतंकवाद से जुड़े मामले) में अदालत द्वारा अभियुक्त पाए जाते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकेगा।
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ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने का भी प्रावधान है।
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विपक्ष का आरोप है कि “गंभीर अपराध” की परिभाषा धुंधली है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को फंसाने में किया जा सकता है।
सदन का माहौल
सदन में हंगामा इतना बढ़ गया कि स्पीकर को बार-बार सांसदों से शांति बनाए रखने की अपील करनी पड़ी। विपक्षी सांसदों ने नारेबाज़ी की और “लोकतंत्र बचाओ” के पोस्टर भी लहराए। कई बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
राजनीतिक मायने
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बिल भारतीय राजनीति में एक नया विवाद खड़ा कर सकता है। जहां सरकार इसे “साफ-सुथरी राजनीति” की दिशा में उठाया गया कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला मान रहा है। आने वाले समय में इस मुद्दे पर सड़कों से लेकर संसद तक और भी बड़ा आंदोलन देखने को मिल सकता है।
निष्कर्ष
पीएम और सीएम जैसे उच्च पदों से हटाने से जुड़े इस बिल ने संसद को पूरी तरह से दो हिस्सों में बाँट दिया है। जहां सरकार इसे ऐतिहासिक सुधार कह रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र के खिलाफ मान रहा है। आने वाले दिनों में यह बिल भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा बहस का मुद्दा बनने वाला है।