Wednesday, August 27, 2025
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30 दिन की गिरफ्तारी पर हटेंगे पीएम-सीएम-मंत्री: केंद्र सरकार संसद में लाएगी नया विधेयक

केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में तीन महत्वपूर्ण विधेयक लाने वाली है, जिनमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को गिरफ्तारी के 30 दिन लगातार बंदी बनाए रखने की स्थिति में कार्यालय से हटाने की व्यवस्था प्रस्तावित है।

नई दिल्ली, 20 अगस्त 2025 – केंद्र सरकार मानसून सत्र में तीन अहम विधेयक संसद में पेश करने वाली है, जिनका उद्देश्य प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय व राज्य स्तर के मंत्रियों को गिरफ्तारी के 30 लगातार दिनों के पश्चात कार्यालय से हटाने की कानूनी रूपरेखा तैयार करना है।

प्रस्तावित विधेयकों की रूपरेखा

Home Minister अमित शाह की अगुवाई में प्रस्तुत किए जाने वाले इन विधेयकों में शामिल है – संविधान (130वाँ संशोधन) विधेयक 2025, संघीय क्षेत्रों पर शासन अधिनियम में संशोधन, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में संशोधन

मुख्य प्रस्ताव यह है कि यदि कोई उच्च पदाधाधिकारी – जैसे प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य मंत्री – किसी गंभीर अपराध के आरोप में लगता है और उस पर कम से कम पाँच वर्ष की सजा का प्रावधान हो, और किसी भी कारणवश 30 दिन लगातार हिरासत में बंद रहता है, तो 31वें दिन तक इस्तीफा न देने पर स्वतः पद से हटा दिया जाएगा

पीएम और मंत्री पुन-नियुक्ति की संभावनाएँ – योजनाबद्ध प्रावधानों के अनुसार, यदि पदाधिकारी हिरासत से रिहा हो जाता है, तो उसे पुनः नियुक्ति की अनुमति भी दी जा सकती है

उद्देश्य और बहस

सरकार का अनुशासन, जवाबदेही और लोक विश्वास की बहाली को लेकर कहना है कि गिरफ्तारी और लम्बे समय तक हिरासत में रहने वाले मंत्री लोकतांत्रिक व्यवस्था और जनसंविधानिक नैतिकता को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए संवैधानिक रूप से सुरक्षा के अभाव में न्यायिक प्रक्रिया के लंबित रहने के दौरान भी पद का दुरुपयोग रोका जाना चाहिए

विपक्ष की प्रतिक्रिया और संभावित विरोध

विधेयकों के प्रस्ताव के साथ ही संसद के दोनों सदनों में विपक्ष द्वारा तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। कुछ विपक्षी दलों का दावा है कि सरकार इस कानून का प्रयोग राजनीतिक रूप से प्रेरित गिरफ्तारी के माध्यम से विपक्षी शासनों को अस्थिर करने के लिए कर सकती है। कांग्रेस के सांसदों ने कहा कि गिरफ्तारी मात्र आरोप पर भी पद से हटाने का अधिकार, **संवैधानिक रूप से असंवैधानिक और न्यायिक प्रक्रियाओं के दुर्भावना पूर्ण इस्तेमाल की संभावना प्रस्तुत करता है।

AIMIM प्रमुख ने बिल को असंवैधानिक ठहराते हुए, पुलिस राज्य की ओर बढ़ता कदम बताते हुए कड़ी वैधानिक चुनौती की चेतावनी दी है।

लागू होने की प्रक्रिया और विधान

विधेयकों को संसद में पेश करके संज्ञान के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जा सकता है, ताकि विवरणात्मक जांच और संशोधन किया जा सके।मानसून सत्र के अंत तक इन प्रस्तावों पर तेज़ गति से पारित करने की प्रक्रिया संभव है, क्योंकि समय सीमा निकट है

संभावित राजनीतिक और संवैधानिक प्रभाव

  • यदि विधेयक पारित होता है, तो वर्तमान और भविष्य में उच्च पदाधिकारियों की गिरफ्तारी के मामलों में इस्तीफा या स्वतः हटाने की अनिवार्यता बनेगी

  • पुन: नियुक्ति की संभावना कानून में मिलने से न्यायिक निर्णय के पश्चात राजनीतिक पुनरागमन की राह भी बन सकती है।

  • दूसरी ओर, विपक्ष द्वारा उठाए गए न्यायिक प्रक्रियाओं की कमी, भेदभावपूर्ण गिरफ्तारी और संवैधानिक मूल्यों पर आघात जैसे आरोप कानून निर्माताओं को संभावित संशोधनों के लिए विवश कर सकते हैं

निष्कर्ष

केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित यह विधेयक लोकतंत्र में राजनीतिक जवाबदेही और नैतिकता की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है, बशर्ते संतुलित न्यायिक तंत्र और अपराधिक आरोपों की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाए। वहीं विपक्ष के विरोध और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की चुनौतियाँ इस विधेयक के पारित होने और अमल में लाए जाने की प्रक्रिया को जटिल भी बना सकती हैं
इस पर आने वाले दिनों में संसदीय बहस और न्यायिक समीक्षा तय करेगी कि क्या यह प्रस्ताव लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाता है या राजनीति में शक्ति संतुलन को प्रभावित करता है

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