“PM–CM हटाने वाला बिल: JPC से सपा–TMC–AAP का किनारा, कांग्रेस पर विपक्षी एकजुटता का इम्तिहान”
नई दिल्ली: संसद में पेश किए गए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को हटाने से जुड़े संवैधानिक संशोधन बिल ने राजनीति के केंद्र में एक नई बहस छेड़ दी है। सरकार का दावा है कि यह बिल लोकतंत्र को और मजबूत करेगा तथा “जवाबदेही” सुनिश्चित करेगा, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक परंपराओं पर सीधा हमला बताया है।
इस बिल पर चर्चा और जांच के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से समाजवादी पार्टी (सपा), तृणमूल कांग्रेस (TMC) और आम आदमी पार्टी (AAP) ने किनारा कर लिया है। इन दलों का मानना है कि JPC मात्र एक औपचारिक प्रक्रिया है और सरकार पहले से ही अपने एजेंडे पर अड़ी हुई है। इस घटनाक्रम के बाद कांग्रेस पर विपक्षी एकता बनाए रखने का दबाव और बढ़ गया है।
विपक्ष का आरोप – “संविधान पर हमला”
सपा, TMC और AAP ने लगभग एक जैसी प्रतिक्रिया दी।
-
सपा का कहना है कि यह बिल राज्यों की स्वायत्तता पर सीधा हमला है और संघीय ढांचे को कमजोर करने वाला कदम है।
-
TMC ने आरोप लगाया कि सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं को सीमित करना चाहती है और JPC केवल एक “फॉर्मेलिटी” बनकर रह गई है।
-
AAP ने इसे सत्ता केंद्रीकरण की साजिश बताया और कहा कि वे इस मुद्दे को जनता के बीच लेकर जाएंगे।
इन दलों का मानना है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को हटाने का अधिकार संवैधानिक व्यवस्था को असंतुलित कर देगा और यह लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ है।
कांग्रेस की दुविधा
JPC से दूरी बनाने वाले विपक्षी दलों के बाद अब कांग्रेस पर नजरें टिकी हैं। कांग्रेस अभी तक समिति में बनी हुई है और उसका तर्क है कि अंदर रहकर सरकार को घेरना ज्यादा प्रभावी होगा। लेकिन सहयोगी दलों के बाहर आने के बाद कांग्रेस के सामने गठबंधन धर्म निभाने और विपक्षी एकता बनाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है।
यदि कांग्रेस समिति से बाहर आती है तो सरकार पर विपक्षी दबाव और बढ़ सकता है। वहीं अगर वह JPC में बनी रहती है तो यह विपक्षी खेमे में दरार का संकेत माना जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह घटनाक्रम विपक्षी राजनीति के लिए अग्निपरीक्षा जैसा है।
-
अगर कांग्रेस विपक्षी साथियों के साथ खड़ी होती है तो सरकार के खिलाफ बड़ा मोर्चा खड़ा किया जा सकता है।
-
यदि कांग्रेस ने अलग रुख अपनाया तो विपक्षी एकता की धार कमजोर हो जाएगी और जनता के बीच सरकार को विपक्ष को बिखरा हुआ दिखाने का मौका मिल जाएगा।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार इस बिल के जरिए विपक्ष को रणनीतिक रूप से फंसाना चाहती है, ताकि विपक्षी दल आपस में असहमति दिखाएं और विपक्षी एकजुटता कमजोर हो।
सड़क से सदन तक संघर्ष की तैयारी
सपा, TMC और AAP ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस मुद्दे को सिर्फ संसद तक सीमित नहीं रखेंगे।
-
सपा ने कहा कि वे उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में इस बिल के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाएंगे।
-
TMC बंगाल में इसे “लोकतंत्र बचाओ” आंदोलन का हिस्सा बना सकती है।
-
AAP पहले से ही केंद्र बनाम राज्य सरकारों की tussle में आक्रामक रही है और इस मुद्दे पर भी दिल्ली और पंजाब में बड़े अभियान की तैयारी कर रही है।
इस तरह, आने वाले हफ्तों में यह मुद्दा संसद से निकलकर सड़कों पर जनआंदोलन का रूप ले सकता है।
सरकार का रुख
सरकार लगातार यह कह रही है कि यह बिल लोकतांत्रिक व्यवस्था को और जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिए है। सत्तारूढ़ दल का तर्क है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे पदों पर बैठे व्यक्तियों को हटाने की प्रक्रिया में अभी तक स्पष्टता नहीं है और यह बिल उस अस्पष्टता को दूर करेगा।
हालांकि, विपक्ष इसे केवल बहाना मानता है और इसे राजनीतिक केंद्रीकरण की कोशिश बता रहा है।
आगे का रास्ता
अब सवाल यह है कि कांग्रेस क्या कदम उठाएगी।
-
अगर कांग्रेस भी JPC से बाहर आती है तो विपक्ष सरकार को संसद और जनता के बीच कठघरे में खड़ा कर सकता है।
-
लेकिन यदि कांग्रेस समिति में बनी रहती है तो विपक्षी एकजुटता पर गहरे सवाल उठेंगे।
सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज हैं कि कांग्रेस इस फैसले को टालकर पहले स्थिति को परखना चाहती है। लेकिन आने वाले दिनों में उसकी स्थिति और स्पष्ट होगी।
निष्कर्ष
PM–CM हटाने वाला बिल केवल एक कानूनी या संवैधानिक मुद्दा नहीं, बल्कि यह भारतीय राजनीति में विपक्षी एकता की परीक्षा बन गया है। JPC से सपा, TMC और AAP का हटना यह दर्शाता है कि विपक्ष के भीतर इस बिल को लेकर गहरी आशंकाएँ हैं। अब पूरा दबाव कांग्रेस पर है कि वह या तो विपक्षी खेमे की मजबूती का हिस्सा बने या अलग राह चुनकर विपक्षी एकजुटता को कमजोर कर दे।
आने वाले दिनों में इस बिल पर बहस न सिर्फ संसद में बल्कि जनता के बीच भी जोर पकड़ने वाली है। इस संघर्ष का असर 2025 और उसके बाद की राजनीति की दिशा तय कर सकता है।