Friday, October 17, 2025
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मोहन् भागवत 75 वर्ष हुए: 16 वर्षों से RSS की बागडोर संभाल रहे संघ प्रमुख

मोहन् भागवत 75 वर्ष हुए और 2009 से RSS के सारसंघ चालक के रूप में 16 वर्षों से संगठन चला रहे हैं। उन्होंने हाल ही में रिटायरमेंट की अफवाहों को खारिज करते हुए कहा कि जब तक Sangh चाहता है, तब तक सेवा का भाव बना रहेगा।

मोहन् भागवत 75 वर्ष पूरे कर चुके हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख के तौर पर वह पिछले 16 वर्षों से संगठन की बागडोर संभाले हुए हैं। 2009 में के.एस. सुदर्शन के बाद संघ के छठे सरसंघचालक बने भागवत ने न केवल संगठन का विस्तार किया बल्कि RSS को भारतीय राजनीति और समाज में और ज्यादा प्रभावशाली बनाया। इस मौके पर संघ परिवार के भीतर और बाहर, उनकी यात्रा, योगदान और भविष्य की दिशा पर चर्चाएँ तेज हो गई हैं।

शुरुआती जीवन और संघ से जुड़ाव

मोहन् भागवत का जन्म 11 सितंबर 1955 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ। उनका परिवार लंबे समय से RSS से जुड़ा रहा है। पिता मधुकरराव भागवत स्वयं भी प्रचारक रहे और RSS में पदाधिकारी रहे। इसी पृष्ठभूमि ने मोहन भागवत को बचपन से ही संघ के संस्कार दिए।

उन्होंने नागपुर के गवर्नमेंट वेटरनरी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। इसके बाद उच्च शिक्षा के अवसर छोड़कर उन्होंने पूरी तरह से RSS को अपना जीवन समर्पित कर दिया और प्रचारक बने।

सरसंघचालक बनने की यात्रा

1975 के आपातकाल के दौर में मोहन भागवत ने सक्रिय भूमिका निभाई। धीरे-धीरे वह संघ के प्रचारक से महाराष्ट्र प्रांत प्रचारक, फिर अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख और अंततः सरकार्यवाह बने।

2009 में के.एस. सुदर्शन के स्वास्थ्य कारणों से त्यागपत्र देने के बाद मोहन भागवत को RSS का छठा सरसंघचालक बनाया गया। उस समय वे अपेक्षाकृत युवा थे और संगठन के भीतर उन्हें एक ऊर्जावान, प्रगतिशील और व्यवहारकुशल नेता माना जाता था।

RSS प्रमुख के तौर पर उपलब्धियाँ

1. राजनीतिक प्रभाव में वृद्धि
भागवत के कार्यकाल में RSS का राजनीतिक प्रभाव और गहरा हुआ। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की 2014 और 2019 की प्रचंड जीत में संघ की भूमिका अहम मानी गई।

2. संगठन का विस्तार
उनके नेतृत्व में RSS की शाखाएँ और सहयोगी संगठन तेजी से बढ़े। आज RSS से जुड़े संगठनों का दायरा शिक्षा, श्रम, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था तक फैला हुआ है।

3. विचारधारा का प्रसार
भागवत ने कई मौकों पर RSS की विचारधारा को नए रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने भारत को “हिंदू राष्ट्र” मानते हुए यह भी कहा कि इसमें सभी धर्मों और समुदायों का सम्मान शामिल है।

4. सामाजिक मुद्दों पर पहल
कोरोना महामारी के दौरान RSS कार्यकर्ताओं ने देशभर में राहत और सहायता का बड़ा अभियान चलाया। दलित-आदिवासी समाज से जुड़ने और उन्हें मुख्यधारा में लाने की पहल भी भागवत के नेतृत्व में हुई।

विवाद और चुनौतियाँ

RSS प्रमुख के रूप में भागवत का कार्यकाल विवादों से भी अछूता नहीं रहा।

  • आरक्षण पर बयान: 2015 में उन्होंने आरक्षण नीति की समीक्षा का सुझाव दिया, जिस पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी।

  • हिंदू राष्ट्र की अवधारणा: उनके बयानों को लेकर कई बार यह सवाल उठे कि RSS की विचारधारा क्या भारत के सभी समुदायों के लिए समावेशी है।

  • दिर-मस्जिद मुद्दा: अयोध्या विवाद और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर भी उनकी टिप्पणियाँ चर्चाओं में रहीं।

75 वर्ष की उम्र और भविष्य की अटकलें

संघ में प्रथा रही है कि 75 वर्ष की उम्र पूरी करने के बाद प्रमुख पदाधिकारी जिम्मेदारी से मुक्त होते हैं। इसी वजह से हाल के महीनों में यह अटकलें तेज थीं कि भागवत अब पद छोड़ सकते हैं।

हालाँकि, उन्होंने इन अटकलों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि संघ में जिम्मेदारी उम्र से नहीं, क्षमता और आवश्यकता से तय होती है। उन्होंने कहा – “जब तक संगठन को मेरी आवश्यकता है, मैं सेवा करता रहूँगा।”

राजनीति और समाज पर असर

मोहन् भागवत 75 वर्ष पूरे करने के साथ ही भारतीय राजनीति में उनकी भूमिका और भी चर्चित हो गई है।

  • उनके नेतृत्व में RSS और BJP के रिश्ते और मजबूत हुए हैं।

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी कई बार भागवत से मार्गदर्शन लेते रहे हैं।

  • समाजिक सरोकारों में RSS की सक्रियता ने संगठन की छवि को बदला है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता

RSS को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा बढ़ी है। भागवत के नेतृत्व में संघ को एक सांस्कृतिक संगठन के तौर पर प्रस्तुत करने का प्रयास हुआ है। अमेरिका और यूरोप में भी संघ समर्थक संगठन सक्रिय हुए हैं।

निष्कर्ष

मोहन् भागवत 75 वर्ष के हो गए हैं और यह सिर्फ एक उम्र का पड़ाव नहीं बल्कि संघ के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। उनके नेतृत्व ने RSS को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया और समाज में उसकी स्वीकार्यता को और मजबूत किया।

भविष्य में चाहे वे पद पर रहें या किसी नए चेहरे को जिम्मेदारी सौंपें, उनका मार्गदर्शन और प्रभाव RSS और भारतीय राजनीति पर लंबे समय तक कायम रहेगा।

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