भारत-चीन संबंधों में नए अध्याय की संभावना: पीएम मोदी और शी जिनपिंग 31 अगस्त को SCO सम्मेलन के दौरान करेंगे मुलाकात
तियानजिन, 28 अगस्त 2025 – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी शनिवार, 31 अगस्त को चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय बैठक करेंगे। यह मोदी की चीन की पहली यात्रा है पिछले सात वर्षों में, और यह मुलाकात दोनों देशों में चल रही सीमा-तनाव में नरमी और वैश्विक कूटनीति में भारत की बढ़ती सक्रियता का संकेत है।
SCO सम्मेलन और इसका सामरिक महत्व
यह SCO शिखर सम्मेलन 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन में आयोजित किया जाएगा और यह संगठन का अब तक का सबसे बड़ा मंच है, जिसमें श्री पुतिन समेत 20 से अधिक विश्व नेता भाग लेंगे। चीन इस पहल को एक नए विश्व व्यवस्था के रूप में स्थापित करना चाहता है, जिसमें वैश्विक दक्षिण के देशों की साझेदारी और एकजुटता को बल मिलता है।
सीमा तनाव से कूटनीतिक मुलायमियाँ
भारत और चीन के बीच लद्दाख में 2020 में हुई गालवान घाटी की हिंसक मुठभेड़ के बाद राजनैतिक और रणनीतिक रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो गए थे। लेकिन अब हालिया समय में सीमा पर शांति बनाए रखने, दौलों व वीज़ा प्रक्रिया में आसानियाँ और व्यापारिक संबंधों में सुधार की दिशा में कदम उठाए गए हैं। मंत्री जयशंकर की हालिया बैठकें और लक्षद्वीपों की गतिविधि इस दिशा में योगदान कर रही हैं।
वैश्विक संदर्भ: अमेरिका-भारत संबंध और यूएस टैरिफ
इसके पीछे एक अहम भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि भी है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार द्वारा भारत पर टैरिफ के दिशा-निर्देशों ने नई चुनौतियां खड़ी की हैं। ऐसे समय में भारत-चीन की मुलाकात इस बात का संकेत है कि भारत अपनी रणनीतिक गहराई और संबद्धता के लिए पूर्व-रुखी शक्तियों के साथ सहयोग भी बढ़ा रहा है।
बैठक के एजेंडे की संभावनाएं
विश्लेषकों के अनुसार, इस मुलाकात में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा हो सकती है:
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सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना
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व्यापार व वीज़ा प्रक्रिया में सुधार
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जलवायु, सुरक्षा, संचार, और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार
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भविष्य की त्रिपक्षीय वार्ता (भारत–चीन–रूस) की रूपरेखा पर विचार
एरिक ओलैंडर (The China-Global South Project) कहते हैं:
“यह SCO सम्मेलन ‘शक्तिशाली दृश्यता’ का मंच है — यह दिखाने का कि वैश्विक दक्षिण कितनी दृढ़ एकजुटता दिखा सकता है, और अमेरिका के प्रयासों के बावजूद चीन, भारत और रूस सहित कई देशों की गतिशीलता बनी हुई है।”
भारतीय राजनैतिक विश्लेषक मनोज केलवर्मानी भी मानते हैं कि इस मंच की वास्तविक चुनौती इसकी कार्यकुशलता में नहीं, बल्कि इसके कूटनीतिक प्रभाव और दृश्यता में है।
निष्कर्ष
31 अगस्त को पीएम मोदी और शी जिनपिंग की यह द्विपक्षीय बैठक न केवल दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने का अवसर है, बल्कि यह वैश्विक संदर्भ में भारत की रणनीतिक स्थिरता और बहुपक्षीय कूटनीतिक संरेखण की ओर बड़ा कदम भी है। इस बैठक की वैश्विक प्रभावशीलता और दीर्घकालिक परिणामों पर नजर रखना अहम होगा।