दोस्ती की छवि, रणनीति की गहराई
तियानजिन में 25वें SCO (शंघाई सहयोग संगठन) शिखर सम्मेलन के मंच पर एक ऐसी तस्वीर सामने आई जिसने सिर्फ कैमरों को नहीं, बल्कि वैश्विक कूटनीति की धड़कन को भी हाई वोल्टेज पर पहुँचा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति शी जिनपिंग और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जब हाथों में हाथ डाले एक आमोद-प्रमोद के क्षण साझा कर रहे थे, तो उनकी यह अमूर्त अभिव्यक्ति एक गहरे राजनीतिक संदेश का वाहक बन गई।
— Business Today की रिपोर्ट बताती है कि मोदी, पुतिन और जिनपिंग ने मिलकर हँसी-खुशी के पल साझा किए, और मोदी व पुतिन एक सजीव बातचीत में आगे बढ़ते नजर आए
— Live अपडेट्स के अनुसार, मोदी-पुतिन के बीच गर्मजोशी भरी झप्पी भी सामने आई, इसके बाद तीनों ने मंच की ओर परिवार-फोटो के लिए कदम बढ़ाया
— सिल्करोड बनाम टैरिफ रोड
समय-सारणी इस बात की है कि यह दृश्य तब आया जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ नीति की गूंज पहले से तेज थी। खैर, टाइम मैगज़ीन ने इस मुलाकात को ट्रंप के भावमाप पर सीधी चोट माना, जैसे चीन यह संदेश दे रहा हो कि वह नए विश्व-अदेश में अपनी केंद्रीय भूमिका निभाने को तैयार है।
और ठीक उसी समय, वाशिंगटन पोस्ट ने बताया कि SCO की यह बैठक चीन द्वारा पश्चिम-विशेषकर अमेरिकी—उच्चारण को चुनौती देने के प्रयास का प्रतीक है, जिसमें मोदी की मौजूदगी उस संदेश को और भी सशक्त बनाती है।
— SCO में नई धुरी का निर्माण
तियानजिन में आयोजित यह सम्मेलन विशेष था—कारण SCO की यह 25वीं वर्षगांठ थी और इस मंच पर विश्व के 20 से अधिक नेताओं की उपस्थिति ने इसे और ऐतिहासिक बना दिया।
— SCO की बहुआयामीता स्पष्ट हुई जब Xi, Modi, Putin के तालमेल ने यह संकेत दिया कि अब एक नया ‘ग्लोबल साउथ’ गठबंधन आकार ले रहा है, जो पश्चिमी प्रभुत्व के वैकल्पिक स्वरूप को आकार दे रहा है।
— और इसके बजाय, SCओ मंच पर यह स्पष्ट हो गया कि यह केवल आर्थिक या क्षेत्रीय सहयोग का मंच नहीं, बल्कि राजनयिक रणनीति और शक्ति संतुलन का नया केंद्र बनता जा रहा है।
— भारत-चीन संबंधों में नए इशारे
मोदी और जिनपिंग के बीच की बातचीत न सिर्फ औपचारिक थी, बल्कि दोनों ने सीमा पर शांति, पठ-यातायात (डायरेक्ट फ्लाइट्स) पुनः शुरू करने और आतंकवाद-विरोधी सहयोग पर सहमति जताई ।
— विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने स्पष्ट किया कि मोदी ने सीमा-शांति को ही भारत-चीन संबंधों का ‘इंश्योरेंस पॉलिसी’ बताया, यानी स्थिरता सिर्फ रूचिकर नहीं, बल्कि ज़रूरी है।
— यह देश का असली संदेश था: भारत प्रतीकात्मक gestures से आगे बढ़कर वास्तविक सहयोग चाहता है—और इस औपचारिक मुलाक़ात ने इसे उजागर किया।
— SCO का भू-राजनीतिक परिदृश्य
SCO की उत्पत्ति संप्रभुता और क्षेत्रीय सहयोग से हुई, लेकिन अब यह संगठन आर्थिक, सुरक्षा, सैन्य, और सामरिक प्लेटफॉर्म बन चुका है, जो इसमें शामिल राष्ट्रों को नए विश्व-व्यवस्था के केंद्र में रखता है।
— SCO को अब सिर्फ एक क्षेत्रीय समूह नहीं, बल्कि multipolar विश्व व्यवस्था का उपप्रधान मंच माना जा रहा है—जहाँ भारत, चीन और रूस एक साझा दृष्टि पर देने की कोशिश कर रहे हैं।
निष्कर्ष
इस SCO शिखर सम्मेलन की एक तस्वीर—जहाँ Modi, Jinping और Putin हाथों में हाथ डाले एकजुटता प्रदर्शित कर रहे थे—वो सिर्फ भावनात्मक क्षण नहीं, बल्कि रणनीतिक संकेत है।
ट्रंप की टैरिफ नीति का संदर्भ दिखता है तो यह समझ आता है कि यह संतुलन शक्तियों का नया गठबंधन बनता जा रहा है—एक ऐसा विश्व जिसमें ग्लोबल साउथ के नेता विरोधात्मक रूप से अपनी भूमिका स्थापित कर रहे हैं।
भारत के लिए यह न सिर्फ औपचारिकता से परे कूटनीति है, बल्कि यह संदेश भी है कि वह विश्वास-नियंत्रण (trust and verify) की रणनीति के साथ आगे बढ़ता है—उस सीमा पर जहां समृद्धि, शांति और सहयोग का गठबंधन संभव है।