सी.पी. राधाकृष्णन बने भारत के 15वें उपराष्ट्रपति, बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 वोटों से दी मात
सी.पी. राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 के नतीजों में भाजपा और एनडीए समर्थित उम्मीदवार ने विपक्ष समर्थित बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 मतों से हराकर भारत के 15वें उपराष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल किया। यह जीत संसद में एनडीए के मजबूत संख्याबल और विपक्ष की कमजोर रणनीति को उजागर करती है।
चुनाव प्रक्रिया और नतीजे
भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों — लोकसभा और राज्यसभा — के सांसदों द्वारा किया जाता है। इस बार कुल 780 सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा लिया।
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सी.पी. राधाकृष्णन को बहुमत से समर्थन मिला और उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार को पीछे छोड़ते हुए जीत पक्की की।
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बी. सुदर्शन रेड्डी को विपक्ष का समर्थन जरूर मिला, लेकिन संख्याबल उनके पक्ष में नहीं रहा।
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अंतिम नतीजों में 152 वोटों का अंतर स्पष्ट हुआ, जिसने इस जीत को एकतरफा बना दिया।
यह जीत इस बात का सबूत है कि संसद में एनडीए का संख्याबल मजबूत है और विपक्ष अभी भी एकजुटता की कमी से जूझ रहा है।
सी.पी. राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर
सी.पी. राधाकृष्णन का नाम भारतीय राजनीति और समाज सेवा में लंबे समय से सक्रिय रहा है।
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वे तमिलनाडु से भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और कई बार पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
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उन्होंने लोकसभा में भी तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व किया और अपने सादगीपूर्ण व्यक्तित्व और संगठन क्षमता के लिए जाने जाते हैं।
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भाजपा ने उन्हें कई बार राज्य राजनीति में भी अहम ज़िम्मेदारियाँ सौंपीं।
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उन्हें राष्ट्रपति का विश्वासपात्र नेता माना जाता है और संसद में अनुभव रखने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है।
उनका उपराष्ट्रपति चुना जाना इस बात का संकेत है कि भाजपा अब दक्षिण भारत के नेताओं को भी राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिकाओं में लाने पर जोर दे रही है।
विपक्ष की रणनीति और हार के कारण
विपक्ष ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि वे राजनीति से बाहर के एक निष्पक्ष चेहरे को सामने ला रहे हैं।
लेकिन विपक्ष की यह रणनीति कारगर नहीं रही, इसके कई कारण हैं:
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संसद में एनडीए के पास पहले से ही पर्याप्त संख्याबल था।
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विपक्षी खेमे में कई दल पूरी तरह से एकजुट नहीं हो पाए।
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कुछ क्षेत्रीय दलों ने मतदान में एनडीए का साथ दिया, जिससे विपक्ष की स्थिति और कमजोर हो गई।
इस चुनाव ने यह साफ कर दिया कि विपक्ष को अभी भी अपनी रणनीति और एकजुटता पर काम करने की जरूरत है।
उपराष्ट्रपति पद का महत्व
भारत का उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। इसकी कुछ प्रमुख भूमिकाएँ हैं:
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उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं और सदन की कार्यवाही को संचालित करते हैं।
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वे राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कई संवैधानिक दायित्व निभाते हैं।
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उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
सी.पी. राधाकृष्णन अब राज्यसभा की बागडोर संभालेंगे और उम्मीद है कि उनकी भूमिका संसद की कार्यवाही को और सुव्यवस्थित बनाएगी।
प्रधानमंत्री और नेताओं की प्रतिक्रियाएँ
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा: “भारत को एक अनुभवी और सरल व्यक्तित्व वाला उपराष्ट्रपति मिला है। सी.पी. राधाकृष्णन संसद की गरिमा को और बढ़ाएँगे।”
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गृहमंत्री अमित शाह ने इसे एनडीए की जीत बताते हुए कहा कि यह नतीजा संगठन और नेतृत्व की ताक़त का प्रमाण है।
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भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी इसे ऐतिहासिक दिन करार दिया।
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विपक्षी नेताओं ने इस चुनाव को “संख्याबल की जीत” बताते हुए कहा कि भविष्य में उन्हें और मजबूती से रणनीति बनानी होगी।
भविष्य की चुनौतियाँ
सी.पी. राधाकृष्णन के सामने कई चुनौतियाँ होंगी:
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राज्यसभा में विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तालमेल बैठाना।
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लगातार हो रही तीखी बहसों और हंगामों के बीच सदन की गरिमा को बनाए रखना।
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संसद की कार्यवाही को सुचारू और प्रभावी ढंग से चलाना।
अगर वे इन चुनौतियों को सफलतापूर्वक संभाल पाते हैं, तो निश्चित रूप से उनका कार्यकाल मिसाल बन सकता है।
निष्कर्ष
सी.पी. राधाकृष्णन की जीत केवल एक चुनावी नतीजा नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति में बदलते समीकरणों का भी संकेत है। भाजपा और एनडीए ने अपने संख्याबल और रणनीति के दम पर यह जीत सुनिश्चित की, जबकि विपक्ष को अपनी कमज़ोरियों का अहसास हुआ।
अब सबकी नज़र इस बात पर होगी कि राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति के तौर पर किस तरह अपनी भूमिका निभाते हैं। यह निश्चित है कि उनका कार्यकाल भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूती देने में महत्वपूर्ण साबित होगा।