छत्तीसगढ़ के बस्तर के सुदूर माओवादी प्रभावित इलाकों में इस बार स्वतंत्रता दिवस का नज़ारा अलग होगा। लंबे समय तक लाल झंडे और हिंसा के डर में जीने वाले 14 गांवों में इस 15 अगस्त 2025 को पहली बार तिरंगा फहराया जाएगा। यह सिर्फ एक समारोह नहीं, बल्कि शांति, सुरक्षा और लोकतंत्र की जीत का प्रतीक होगा।
दशकों का डर और अब नई सुबह
बस्तर के सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जिलों के ये गांव दशकों तक नक्सली गतिविधियों के केंद्र रहे हैं। यहां लोगों को तिरंगा फहराने की अनुमति नहीं थी, बल्कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर लाल झंडा लगाने का दबाव बनाया जाता था। विरोध करने वालों को हिंसा और धमकी का सामना करना पड़ता था।
स्थानीय निवासी बताते हैं कि आज़ादी के इतने साल बाद भी वे असल में “आजाद” महसूस नहीं कर पाते थे।
सुरक्षा बलों और प्रशासन की बड़ी उपलब्धि
पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों ने लगातार अभियान चलाकर इन क्षेत्रों में नक्सली प्रभाव को काफी हद तक कम किया है। नई सुरक्षा चौकियों की स्थापना, सड़क निर्माण, मोबाइल नेटवर्क और सरकारी योजनाओं की पहुंच ने ग्रामीणों के मन में भरोसा जगाया है।
बीजापुर के पुलिस अधीक्षक ने बताया, “यह सिर्फ सुरक्षा बलों की जीत नहीं, बल्कि हर उस ग्रामीण की जीत है जिसने डर से आज़ादी पाने का सपना देखा था।”
ग्रामीणों की भावनाएं
ग्राम पंचायत के सदस्यों का कहना है कि इस बार गांव के बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी तिरंगा यात्रा में शामिल होंगे। गांव में सांस्कृतिक कार्यक्रम, गीत-संगीत और खेल प्रतियोगिताएं भी होंगी।
एक बुजुर्ग ग्रामीण ने भावुक होकर कहा, “हमने अपने बच्चों को हमेशा लाल झंडा देखा है, अब उनकी आंखों में तिरंगे के रंग बसेंगे।”
सरकारी योजनाओं की मदद
पिछले कुछ वर्षों में इन इलाकों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, उज्ज्वला योजना और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे प्रयासों ने भी बदलाव की राह खोली है। युवाओं को रोजगार के अवसर और बच्चों को शिक्षा मिल रही है, जिससे माओवादी विचारधारा का असर कमजोर हुआ है।
15 अगस्त को होगा ऐतिहासिक क्षण
15 अगस्त की सुबह सभी 14 गांवों में एक साथ ध्वजारोहण होगा। सुरक्षा बल, प्रशासनिक अधिकारी और स्थानीय लोग मिलकर इसे ऐतिहासिक अवसर बनाएंगे। इसे लेकर पूरे क्षेत्र में उत्साह का माहौल है।
मानवीय दृष्टिकोण (Human Touch):
यह खबर सिर्फ एक प्रशासनिक सफलता की नहीं, बल्कि उन हजारों दिलों की है जो दशकों तक डर में जीने को मजबूर थे। तिरंगे का फहरना उनके लिए एक नए विश्वास, उम्मीद और सम्मान की शुरुआत है। बस्तर के ये गांव अब न केवल नक्शे पर, बल्कि देश की आज़ादी के असली मायने में अपनी पहचान दर्ज कराएंगे।