देश में महंगाई की रफ्तार पर आखिरकार लगाम लग गई है। जुलाई 2025 में भारत की खुदरा महंगाई दर घटकर मात्र 1.55% रह गई है, जो पिछले आठ वर्षों में सबसे कम है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमतों में स्थिरता के कारण आई है।
खाने-पीने की चीजों में राहत
खुदरा महंगाई में इस गिरावट का सबसे बड़ा कारण खाद्य वस्तुओं के दामों में कमी है। सब्जियों, दालों, और फल की कीमतों में पिछले महीने की तुलना में 3-5% तक की गिरावट दर्ज की गई है। मॉनसून के बेहतर प्रदर्शन और समय पर फसल की आपूर्ति ने इस राहत में अहम भूमिका निभाई है।
ईंधन की कीमतों में स्थिरता
सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर टैक्स में किसी तरह की बढ़ोतरी न करने और वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें स्थिर रहने से ट्रांसपोर्ट कॉस्ट में भी गिरावट आई है, जिसका सीधा असर रोज़मर्रा के सामान की कीमतों पर पड़ा है।
RBI के लिए सकारात्मक संकेत
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए यह आंकड़ा काफी अहम है। केंद्रीय बैंक महंगाई को 4% के दायरे में रखने का लक्ष्य रखता है, लेकिन मौजूदा स्तर इससे भी काफी नीचे है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर महंगाई इसी तरह नियंत्रित रहती है, तो RBI आगे ब्याज दरों में कटौती पर विचार कर सकता है, जिससे उद्योग जगत को निवेश बढ़ाने का मौका मिलेगा।
आम जनता को बड़ी राहत
दिल्ली के एक स्थानीय बाजार में सब्जी विक्रेता राकेश यादव ने कहा, “पिछले कुछ महीनों में टमाटर और प्याज के दाम आसमान छू रहे थे, लेकिन इस बार दाम कम हुए हैं, जिससे ग्राहकों की भीड़ बढ़ गई है।” वहीं, गृहिणी अनीता शर्मा ने कहा, “रसोई का बजट अब थोड़ा संभल गया है, उम्मीद है कि यह राहत आगे भी बनी रहे।”
आर्थिक विकास में मदद
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि कम महंगाई का सीधा असर लोगों की क्रय शक्ति पर पड़ता है। जब लोगों के पास बचत बढ़ती है, तो वे ज्यादा खर्च करते हैं, जिससे बाजार में मांग बढ़ती है और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है।
चुनौतियां अब भी बाकी
हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने या खराब मौसम के कारण खाद्य आपूर्ति प्रभावित होने पर महंगाई फिर से बढ़ सकती है। इसलिए, स्थायी राहत के लिए आपूर्ति श्रृंखला और कृषि क्षेत्र में सुधार जारी रखना जरूरी है।
📌 निष्कर्ष:
1.55% की यह महंगाई दर सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के लिए राहत की सांस है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले महीनों में यह ट्रेंड बना रहता है या नहीं।