“असम के CM हिमंत बिस्वा सरमा का सख्त बयान: ‘राज्य में बांग्लादेशियों का स्वागत नहीं’, सैयदा हमीद की टिप्पणी पर पलटवार”
असम की राजनीति में सोमवार को उस समय हलचल मच गई जब मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पूर्व राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की अध्यक्ष और वरिष्ठ समाजसेवी सैयदा हमीद की टिप्पणी पर तीखा पलटवार किया। दरअसल, हमीद ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा था कि “मानवता के नाते बांग्लादेश से आने वालों को ठुकराना सही नहीं है, उन्हें भी जगह मिलनी चाहिए।” इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सरमा ने कहा –
“असम की सीमाएं और संस्कृति पहले ही घुसपैठ की मार झेल चुकी हैं। हम साफ कर देना चाहते हैं कि राज्य में बांग्लादेशियों का स्वागत नहीं है।”
असम की पहचान और घुसपैठ का सवाल
सीएम सरमा ने अपने संबोधन में कहा कि असम लंबे समय से बांग्लादेशी घुसपैठ की चुनौती का सामना कर रहा है। इस कारण राज्य की जनसांख्यिकीय संरचना और सांस्कृतिक विरासत पर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि यह केवल राजनीति का मुद्दा नहीं, बल्कि असम की अस्मिता और भविष्य का प्रश्न है।
सरमा ने याद दिलाया कि असम आंदोलन (1979–1985) इसी मुद्दे को लेकर हुआ था, जिसमें हजारों युवाओं ने बलिदान दिया। उनका कहना था कि “हम उन शहीदों की भावना के साथ विश्वासघात नहीं कर सकते। असम को बचाना ही हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है।”
NRC और नागरिकता का विवाद
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि अवैध बांग्लादेशी नागरिक न सिर्फ राज्य की आर्थिक स्थिति पर बोझ डालते हैं, बल्कि स्थानीय लोगों के रोजगार, संसाधनों और जमीन पर भी कब्ज़ा करते हैं।
सरकार पहले ही NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) को सख्ती से लागू करने की मांग कर चुकी है। सरमा ने दोहराया कि NRC का उद्देश्य किसी समुदाय को टारगेट करना नहीं, बल्कि अवैध प्रवासियों की पहचान करना है। उन्होंने कहा –
“हम असम के हर वैध नागरिक का स्वागत करते हैं, लेकिन घुसपैठियों को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे।”
सैयदा हमीद पर सीधा हमला
सैयदा हमीद की टिप्पणी को “गैर-जिम्मेदाराना और खतरनाक” बताते हुए सरमा ने कहा कि यह बयान उन ताकतों को बढ़ावा देता है जो असम को जनसांख्यिकीय रूप से अस्थिर करना चाहते हैं। उन्होंने विपक्षी दलों पर भी निशाना साधा और कहा कि वोट बैंक की राजनीति के लिए कुछ लोग घुसपैठियों के समर्थन में खड़े हो जाते हैं।
पड़ोसी देशों से रिश्तों पर असर?
इस विवाद का एक अंतरराष्ट्रीय पहलू भी है। बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध फिलहाल संतुलित हैं, लेकिन असम में घुसपैठ का मुद्दा अक्सर इन रिश्तों में तनाव पैदा कर देता है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सरमा का बयान एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश है कि केंद्र और राज्य सरकार इस मामले में अब किसी भी तरह की ढिलाई बरदाश्त नहीं करेगी।
राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज
इस बयान के बाद असम की राजनीति गरमा गई है।
-
भाजपा और उसके सहयोगी सरमा के रुख का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि “यह असम की सुरक्षा का सवाल है।”
-
वहीं विपक्ष का कहना है कि सरकार इस मुद्दे का इस्तेमाल ध्रुवीकरण के लिए कर रही है।
-
सामाजिक संगठनों का मत है कि “मानवता और सुरक्षा” दोनों के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत है।
2026 चुनावी संदर्भ
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान आने वाले असम विधानसभा चुनाव 2026 की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। भाजपा राज्य में लगातार राष्ट्रीय पहचान और घुसपैठ विरोधी एजेंडे को प्रमुख मुद्दा बना रही है। सरमा के बयान से साफ है कि यह मुद्दा अगले चुनाव तक और तेज़ी से उठाया जाएगा।
निष्कर्ष
सीएम हिमंत बिस्वा सरमा का बयान केवल एक राजनैतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि असम की जनता के भीतर वर्षों से जड़ जमाए घुसपैठ के डर और सांस्कृतिक असुरक्षा की गूंज है। सैयदा हमीद का बयान इस बहस को और भड़का गया है।
अब सवाल यह है कि आने वाले समय में असम की राजनीति और सामाजिक ताना-बाना इस विवाद से कैसे प्रभावित होगा।