नई दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह ने INDIA गठबंधन के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार B. सुदर्शन रेड्डी पर नक्सलवाद का समर्थन करने का तंज कसा है। Kochi में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि सुदर्शन रेड्डी द्वारा 2011 में दिए गए सलवा जूडम न्यायादेश ने नक्सलवाद को मजबूत किया, और यदि यह निर्णय न दिया जाता तो नक्सल आतंकवाद 2020 से पहले समाप्त हो सकता था।
शाह के आरोप की पृष्ठभूमि
अमित शाह ने कहा कि सुदर्शन रेड्डी वहीं न्यायाधीश थे जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच का हिस्सा बन कर सलवा जूडम आंदोलन को अवैध घोषित किया था। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि रेड्डी के इस न्यायादेश के परिणामस्वरूप नक्सलवाद की जटिल स्थिति बनी और कुछ क्षेत्रों में आतंक की स्थिति बढ़ी। शाह ने विशेष रूप से केरल का ज़िक्र करते हुए कहा कि वहाँ के लोग इसे समझेंगे कि वामपंथी दवाब के कारण कांग्रेस ने ऐसा उम्मीदवार चुना जो नक्सलवाद को समर्थन देने वाला प्रतीत होता है।
सुदर्शन रेड्डी की प्रतिक्रिया
खबरों के अनुसार सुदर्शन रेड्डी ने इस आरोप को खारिज किया और कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट का न्यायादेश था, मेरा व्यक्तिगत निर्णय नहीं। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि विषय को व्यक्तिगत स्तर पर जोड़ना उचित नहीं है। उन्होंने चुनाव को दो व्यक्तियों की लड़ाई न मानते हुए कहा कि यह दो विचारधाराओं के बीच का टकराव है।
राजनीतिक और चुनावी आयाम
यह हमला उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 से पहले राजनीतिक सियासी टकराव का संकेत है। चुनाव में INDIA ब्लॉक और NDA उम्मीदवारों के बीच प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है, और बी. सुदर्शन रेड्डी NDA उम्मीदवार C.P. Radhakrishnan का मुकाबला कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का सलवा जूडम निर्णय – क्या था?
सलवा जूडम एक मिलिशिया-शैली का नागरिक संगठन था जिसे आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) के रूप में नियुक्त करने की प्रक्रिया से जोड़ा गया था, जिसका उद्देश्य माओवादी (माओवादी) विद्रोह से निपटना था। 2011 में सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी शामिल थे, ने यह प्रक्रिया गैरकconstitutional घोषित करते हुए उपयुक्त कानूनी प्रक्रिया का पालन न करना, आदिवासी युवाओं के हथियारबंद होना, और मानवाधिकार उल्लंघन जैसे मुद्दों पर चिंता व्यक्त की। अदालत ने SPOs को हथियार वापस करने और विधिक प्रक्रिया के अंतर्गत संचालन पर जोर दिया।
क्या आरोप सही बैठते हैं?
अमित शाह के आरोप राजनीतिक दृष्टि से गंभीर संकेत देते हैं, क्योंकि वे स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं—विशेषकर केरल जैसे राज्यों में जहां Naxalवाद और वामपंथ संवेदनशील राजनीतिक विषय हैं। वहीं सुदर्शन रेड्डी की सफाई इस बात को भी दर्शाती है कि न्यायिक निर्णयों को राजनीतिक हमला न बनाने का प्रयास हो रहा है।
संभावित राजनीतिक परिणाम
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सुधर्शन रेड्डी vs Radhakrishnan — चुनाव जोरदार प्रचार और घेराव का मैदान बन सकता है।
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NDA इस आरोप का राष्ट्रवादी सुरक्षा संदेश के रूप में इस्तेमाल कर सकता है और आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी छवि अपने चुनाव प्रचार का हिस्सा बना सकता है।
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INDIA ब्लॉक को तर्कसंगत जवाब देना होगा, जिसमें न्यायाधीश की भूमिका, उचित कानूनी प्रक्रिया, और राजनीतिक आरोपों के पीछे की साजिश को स्पष्ट करना आवश्यक हो सकता है।
आगे क्या?
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सुदर्शन रेड्डी के प्रतिक्रियात्मक संवाद और NDA नेताओं की प्रतिक्रिया आने वाले दिनों में चुनावी माहौल को और गरम कर सकते हैं।
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सत्यापन एजेंसियों द्वारा 2011 सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और उसके प्रभावों पर शोध तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में नयी बहस खुल सकती है।