संसद का मानसून सत्र इस बार पूरी तरह से 130वें संशोधन विधेयक 2025 पर केंद्रित रहा। इस विधेयक को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जबरदस्त टकराव देखने को मिला। सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में इस संशोधन का बचाव करते हुए कहा कि यह कदम लोकतांत्रिक व्यवस्था को और मजबूत करने, पारदर्शिता बढ़ाने और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए उठाया गया है।
अमित शाह ने विपक्ष के उन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें कहा जा रहा था कि सरकार इस संशोधन के जरिए “राजनीतिक असहमति को कुचलना” चाहती है। उन्होंने कहा कि “यह विधेयक किसी पार्टी या नेता के खिलाफ नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार जैसी बुराई को खत्म करने के लिए है।”
शाह ने केजरीवाल की गिरफ्तारी का दिया उदाहरण
अपने संबोधन में शाह ने हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि दिल्ली की शराब नीति घोटाले में जिस तरह के आरोप सामने आए और जिस तरह सरकार के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति पर ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे, वह यह साबित करता है कि कठोर संवैधानिक प्रावधानों की कितनी आवश्यकता है।
शाह ने कहा, “जनता तब सबसे ज्यादा आहत होती है जब जिन नेताओं पर उन्होंने भरोसा जताया, वही सत्ता का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं। ऐसे हालात में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए मजबूत कानून और सख्त संशोधन जरूरी हैं।”
विपक्ष का पलटवार
हालांकि, विपक्ष ने शाह के इन तर्कों को पूरी तरह से खारिज किया। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और INDIA ब्लॉक के अन्य दलों ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” बताया।
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कांग्रेस नेताओं का कहना था कि यह विधेयक सत्ता पक्ष को “अत्यधिक और अनुचित शक्तियां” देता है, जिससे वे विपक्षी नेताओं को निशाना बना सकते हैं।
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आप (AAP) सांसदों ने तो सीधे तौर पर अमित शाह पर आरोप लगाया कि उन्होंने केजरीवाल का उदाहरण देकर यह स्पष्ट कर दिया कि यह संशोधन विपक्ष को खत्म करने का हथियार है।
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टीएमसी और आरजेडी सांसदों ने भी इसे “संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता पर हमला” करार दिया।
विपक्ष ने सदन में हंगामा किया और कई बार वॉकआउट भी किया।
विधेयक में क्या है खास?
हालांकि सरकार ने पूरे विधेयक के प्रावधानों को अभी सार्वजनिक रूप से विस्तार से नहीं बताया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक इसमें कई अहम बिंदु शामिल हैं—
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भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित जांच और कार्रवाई के लिए विशेष संवैधानिक प्रावधान।
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लोकसेवकों और जनप्रतिनिधियों पर जवाबदेही तय करने के सख्त प्रावधान।
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नीतिगत फैसलों में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित करने का ढांचा।
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राज्यों और केंद्र के बीच समन्वय के लिए नए अधिकारिक प्रावधान।
इन बिंदुओं को लेकर ही विपक्ष को आशंका है कि केंद्र सरकार इसका इस्तेमाल “राजनीतिक हथियार” के तौर पर करेगी।
सरकार का पक्ष
अमित शाह ने कहा कि विपक्ष चाहे जितना विरोध करे, जनता इस विधेयक की मंशा को भली-भांति समझ रही है। उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य लोकतंत्र को कमजोर करना नहीं, बल्कि उसे और मजबूत बनाना है। यह संशोधन आने वाली पीढ़ियों को भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की दिशा में ऐतिहासिक कदम होगा।”
सत्ता पक्ष के सांसदों ने भी इसे ऐतिहासिक पहल बताया और कहा कि जैसे 73वें और 74वें संशोधनों ने पंचायती राज और नगर निकायों को मजबूत किया था, वैसे ही 130वां संशोधन शासन प्रणाली को नई दिशा देगा।
संसद में टकराव और सड़क पर बहस
सदन में इस विधेयक पर गर्मागर्म बहस के बीच कई बार कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी-अपनी बातों पर अड़े रहे। वहीं, संसद के बाहर भी यह मुद्दा जनता और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है।
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जहां बीजेपी और एनडीए समर्थक इसे “भ्रष्टाचार मुक्त भारत की दिशा में कदम” बता रहे हैं, वहीं विपक्ष समर्थक इसे “तानाशाही की ओर बढ़ता कदम” करार दे रहे हैं।
राजनीतिक मायने
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 130वां संशोधन केवल कानूनी और संवैधानिक पहल नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर आने वाले चुनावों पर भी पड़ सकता है।
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बीजेपी इसे “ईमानदार शासन” का चेहरा बनाकर पेश करेगी।
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वहीं विपक्ष इसे “लोकतंत्र बचाओ” आंदोलन का हिस्सा बनाकर जनता को संदेश देगा कि सरकार उन्हें कुचलना चाहती है।
इस तरह यह विधेयक आने वाले महीनों में राजनीति का बड़ा मुद्दा बन सकता है।
निष्कर्ष
अमित शाह का यह बयान कि “विपक्ष भ्रष्टाचारियों के साथ खड़ा है और जनता देख रही है” आने वाले समय में राजनीतिक विमर्श को और तेज करेगा। केजरीवाल की गिरफ्तारी का हवाला देकर शाह ने साफ कर दिया है कि सरकार इस विधेयक को केवल संवैधानिक सुधार नहीं, बल्कि “राजनीतिक नैतिकता” के प्रतीक के रूप में भी पेश करेगी।
फिलहाल विधेयक स्थायी समिति को भेजा गया है और आने वाले दिनों में इस पर और संशोधन और चर्चा होने की संभावना है। लेकिन इतना तय है कि 130वां संशोधन विधेयक आने वाले महीनों में भारतीय राजनीति के केंद्र में रहेगा और सत्ता-संघर्ष का बड़ा हथियार भी बनेगा।