बालेन शाह का इनकार, सुशीला कार्की का नाम आगे — नेपाल की राजनीति में बड़ा मोड़
सुशीला कार्की नेपाल राजनीति में इन दिनों सबसे बड़ा नाम बनकर सामने आई हैं। संसद के बाहर चल रहे Gen-Z प्रदर्शन, कई मंत्रियों के इस्तीफे और राजनीतिक अस्थिरता के बीच बालेन शाह ने नेतृत्व संभालने से इनकार कर दिया। ऐसे हालात में पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को सत्ता का संभावित विकल्प माना जा रहा है।
नेपाल इन दिनों अभूतपूर्व राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। संसद के बाहर Gen-Z प्रदर्शनकारियों के भारी विरोध, कई मंत्रियों के इस्तीफे और लगातार बढ़ती अशांति के बीच सत्ता का भविष्य अधर में लटक गया है। इसी बीच राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बन गई हैं देश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की। युवा प्रदर्शनकारियों के प्रिय चेहरा माने जाने वाले काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने अचानक नेतृत्व संभालने में दिलचस्पी न दिखाकर सबको चौंका दिया। ऐसे में अब नेपाल की राजनीति में सुशीला कार्की का नाम तेजी से उभर रहा है।
बालेन शाह का इनकार: युवाओं के लिए झटका
काठमांडू के करिश्माई मेयर और लोकप्रिय रैपर से नेता बने बालेन शाह को लंबे समय से Gen-Z आंदोलन का चेहरा माना जाता रहा है। युवा पीढ़ी को उम्मीद थी कि वे आंदोलन को राजनीतिक दिशा देंगे और नेतृत्व की कमान संभालेंगे। लेकिन शाह ने स्पष्ट कर दिया कि वह फिलहाल सत्ता या प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल नहीं होना चाहते।
उनका यह फैसला आंदोलनकारी युवाओं के लिए किसी झटके से कम नहीं है, क्योंकि वे भ्रष्टाचार विरोधी छवि और सादगीपूर्ण राजनीति के लिए जाने जाते हैं।
सुशीला कार्की पर निगाहें
शाह के पीछे हटने के बाद अब पूरा ध्यान नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस रह चुकीं सुशीला कार्की पर केंद्रित हो गया है। कार्की की छवि ईमानदार और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाने वाली नेता के रूप में रही है।
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उन्होंने अपने कार्यकाल में कई बड़े फैसले सुनाए।
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न्यायपालिका की स्वतंत्रता और पारदर्शिता के लिए जानी जाती हैं।
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जनता के बीच उनकी छवि साफ-सुथरी और मजबूत रही है।
यही वजह है कि आंदोलनकारी अब उन्हें अंतरिम सरकार या ट्रांजिशनल नेतृत्व की संभावित दावेदार मान रहे हैं।
क्यों कार्की हो सकती हैं सही विकल्प?
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भ्रष्टाचार विरोधी छवि – नेपाल में मौजूदा संकट का एक बड़ा कारण राजनीतिक दलों में फैला भ्रष्टाचार है। कार्की का अतीत इस लड़ाई से जुड़ा रहा है।
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निष्पक्ष छवि – वह किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ी हैं, इसलिए उन्हें “न्यूट्रल फेस” माना जा सकता है।
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महिला नेतृत्व का प्रतीक – अगर वे कमान संभालती हैं, तो यह नेपाल की राजनीति में एक ऐतिहासिक कदम होगा।
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अनुभव – न्यायपालिका और प्रशासनिक प्रणाली का अनुभव उन्हें संकट प्रबंधन में मदद कर सकता है।
राजनीतिक दलों की स्थिति
नेपाल की मौजूदा राजनीति बुरी तरह बंटी हुई है।
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कई मंत्रियों के इस्तीफे से सरकार कमजोर हो चुकी है।
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पीएम ओली का विरोध हर तरफ से हो रहा है।
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विपक्षी दल भी आंदोलनकारी युवाओं के दबाव में हैं।
ऐसे में राजनीतिक दलों को भी एक ऐसे चेहरे की तलाश है, जिसे जनता स्वीकार करे और जो अंतरिम दौर में सत्ता की स्थिरता ला सके।
अंतरराष्ट्रीय नजरिया
नेपाल का यह संकट सिर्फ आंतरिक नहीं है।
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भारत, चीन और पश्चिमी देश हालात पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।
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काठमांडू में अस्थिरता क्षेत्रीय राजनीति को भी प्रभावित कर सकती है।
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सुशीला कार्की जैसी गैर-राजनीतिक शख्सियत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेपाल की साख को सुधार सकती हैं।
जनता और Gen-Z की उम्मीदें
Gen-Z आंदोलन नेपाल की राजनीति में सबसे बड़ा बदलाव लेकर आया है। युवा पहली बार इतनी बड़ी संख्या में सड़कों पर हैं। वे सिर्फ चेहरा नहीं, बल्कि ठोस बदलाव चाहते हैं।
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पारदर्शी सरकार
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भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति
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युवाओं और महिलाओं की भागीदारी
ऐसे में कार्की का नाम उन उम्मीदों के करीब माना जा रहा है।
चुनौतियाँ
हालांकि कार्की को आगे लाने में कई चुनौतियाँ भी हैं:
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क्या राजनीतिक दल उन्हें सर्वसम्मति से समर्थन देंगे?
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क्या वे राजनीति के जटिल समीकरणों में टिक पाएंगी?
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क्या सेना और सुरक्षा तंत्र उनकी नियुक्ति को स्वीकार करेगा?
निष्कर्ष
नेपाल इस समय एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। बालेन शाह के इनकार के बाद सुशीला कार्की का नाम नई उम्मीद की तरह सामने आया है। यदि वे नेतृत्व संभालती हैं, तो यह नेपाल की राजनीति में ऐतिहासिक बदलाव साबित हो सकता है। लेकिन यह तभी संभव होगा जब सभी पक्ष एकजुट होकर उन्हें समर्थन दें और आंदोलनकारी युवा उनकी ईमानदार छवि पर भरोसा जताते रहें।
नेपाल के इस बड़े राजनीतिक संकट में आने वाले दिनों में सुशीला कार्की की भूमिका बेहद अहम हो सकती है।