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सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री: नेपाल की राजनीति में ऐतिहासिक कदम, आज लेंगी शपथ

सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में आज शपथ लेंगी। पूर्व चीफ जस्टिस और नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं कार्की को नागरिक आंदोलन और राजनीतिक सहमति के बाद अंतरिम सरकार का नेतृत्व सौंपा जा रहा है।

सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री: नेपाल की राजनीति में ऐतिहासिक कदम, आज लेंगी शपथ

काठमांडू, 12 सितंबर 2025 – नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता के बीच आज एक ऐतिहासिक कदम उठाया जा रहा है। पूर्व चीफ जस्टिस और देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री (Sushila Karki Interim Prime Minister) के रूप में शपथ लेंगी।नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता के बीच, पूर्व सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस सुशीला कार्की आज अंतरिम प्रधानमंत्री (Interim Prime Minister) के रूप में शपथ लेने की दिशा में हैं। देश भर में बढ़े हुए Gen Z-आंदोलन, बढ़ती असंतुष्टि, और सरकारी नीतियों पर सवालों के बीच यह कदम न्याय, पारदर्शिता और राजनीतिक मध्य मार्ग का संकेत माना जा रहा है।

नेपाल के वर्तमान प्रधान मंत्री K.P. शर्मा ओली की सरकार पर हाल ही में सामाजिक मीडिया प्रतिबंध, भ्रष्टाचार की शिकायतों, और नागरिकों की स्वतंत्रता पर हमले की आशंका के चलते भारी विरोध प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों के चलते ओली ने 9 सितंबर को इस्तीफा दे दिया था, और अब सरकार की अस्थायी स्थिति बनी हुई है।

सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बनने की रूपरेखा

सुशीला कार्की, जो 2016-17 में नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस रही हैं, Gen Z-नागरिक आंदोलन की पहली पसंद बनी हैं। नागरिकों की मांगों और राजनीतिक पार्टियों की बातचीत के बाद, राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के साथ सैन्य अधिकारियों और अन्य संवैधानिक निकायों द्वारा उनके नाम को स्वीकार करने की प्रक्रिया चल रही है।

समाचार एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार, शपथ ग्रहण समारोह आज शाम करीब 8:30 बजे आयोजित होने की योजना है, हालांकि कुछ हिस्सों में समय व आयोजन को लेकर अंतिम सहमति नहीं बनी है।

संसद भंग और अस्थाई सरकार की जरूरत

सुशीला कार्की के शपथ लेने से पहले एक बड़ा संवैधानिक एवं سیاسی मुद्दा है — संसद का भंग होना। विरोध प्रदर्शनकारियों ने संसद को अल्पकालिक और अप्रासंगिक करार दिया है क्योंकि वे यह मानते हैं कि वर्तमान संरचनाएँ ज़मीनी समस्याओं से अनभिज्ञ हैं। सरकार और विपक्ष के बीच इस मुद्दे पर मतभेद हैं कि भंग की स्थिति कैसे और कब प्रभावी होगी।

अन्यथा, अंतरिम सरकार का मुख्य उद्देश्य आगामी आम चुनावों की तैयारियों को सुनिश्चित करना है। नागरिकों और विरोधियों दोनों में एक अपेक्षा है कि सुशीला कार्की एक तटस्थ भूमिका निभाएँगी और भ्रष्टाचार, न्याय तथा सरकारी जवाबदेही को बढ़ावा दें।

Gen Z-आंदोलन का दबाव और लोकप्रियता

नेपाल में युवा वर्ग, विशेष रूप से Gen Z, सामाजिक मीडिया प्रतिबंध, बेरोज़गारी, आर्थिक असमानता, और सरकारी पारदर्शिता की कमी को लेकर सड़कों पर हैं। यही युवा समर्थक सुशीला कार्की को एक स्वच्छ और निर्दलीय हस्ती के रूप में देखते हैं, जिनके न्यायिक करियर और भ्रष्टाचार विरोधी निर्णयों ने उन्हें लोकप्रिय बनाया है।

उनकी लोकप्रियता और समर्थन से राजनीतिक दलों पर दबाव बढ़ गया है कि वे इस नाम पर समझौता करें और एक ऐसा नेतृत्व चुनें जो नागरिकों के भरोसे को लौटाए।

चुनौतियाँ और संवैधानिक पेंच

हालाँकि सुशीला कार्की के नाम पर सहमति बनती दिखाई दे रही है, लेकिन संवैधानिक प्रक्रियाएँ अभी पूरी तरह साफ नहीं हैं। कुछ दल यह तर्क दे रहे हैं कि interim PM के पास कितनी शक्तियाँ होंगी, संसद पुनः कब बहाल होगी, और चुनाव कब होंगे, ये सभी महत्त्वपूर्ण सवाल हैं।

इसके अलावा, विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा, सरकारी दबाव और प्रतिबंधों के पुनर्विचार जैसे मुद्दे अभी भी जनता के बीच चर्चा का विषय हैं। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की पारदर्शिता अभी भी प्रमुख चिंता बनी हुई है।

क्या होगा सुशीला कार्की के नेतृत्व में?

यदि सुशीला कार्की अंतरिम प्रधान मंत्री बनती हैं, तो उनसे अपेक्षा है कि वे सरकार को उस दिशा में ले जाएँ:

  • आगामी आम चुनाव की निष्पक्ष तैयारियाँ करें, जिसमें कॉमन चुनाव आयोग, पारदर्शी मतदान प्रक्रिया, और स्वतंत्र पर्यवेक्षण शामिल हो।

  • भ्रष्टाचार के विरोधी अभियान को तेज करें, क्योंकि आंदोलन का मुख्य मुद्दा यही है।

  • युवाओं, विशेषकर Gen Z की मांगों को सुनें और सरकारी नीतियों में शामिल करें।

  • सरकार और नागरिकों के बीच संवाद स्थापित करें ताकि हिंसा और विरोध प्रदर्शन कम हों।

निष्कर्ष

सुशीला कार्की का नाम अब नेपाल में सिर्फ एक न्यायविद की भूमिका तक सीमित नहीं है; वह अस्थायी सरकार के चेहरा बन सकती हैं जो देश को विवादों और अस्थिरता से निकालने की जिम्मेदारी लेगी। सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बनने की स्थिति इस तरह की है कि जनता और राजनीतिक दल दोनों ने उन्हें उम्मीद की किरण के रूप में देखा है।

परिवारवादी राजनीति, व्याप्त भ्रष्टाचार और नागरिकों की आवाज़ की अनदेखी के बीच, आज नेपाल की स्थिति में यह परिवर्तन संभवतः पहला कदम है जो लोकतंत्र को पुनर्जीवित कर सके।

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