Thursday, October 16, 2025
Thursday, October 16, 2025
HomeInternationalनेपाल सोशल मीडिया बैन 2025: हिंसक विरोध में 19 मौतें और 300...

नेपाल सोशल मीडिया बैन 2025: हिंसक विरोध में 19 मौतें और 300 घायल, सरकार ने प्रतिबंध हटाया

नेपाल सोशल मीडिया बैन 2025 हट गया है। इस बैन के खिलाफ हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में 19 लोगों की मौत और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए। काठमांडू में कर्फ्यू और सरकार की कार्रवाई पर उठे सवाल।

नेपाल ने हटाया सोशल मीडिया बैन, हिंसक विरोध प्रदर्शनों में 19 की मौत और 300 से अधिक घायल


नेपाल सोशल मीडिया बैन 2025 ने पूरे देश में बवाल मचा दिया। नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाया गया प्रतिबंध हटा लिया है, लेकिन इस दौरान हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में 19 लोगों की मौत और 300 से ज्यादा लोग घायल हो गए। राजधानी काठमांडू समेत कई जगह कर्फ्यू भी लगाना पड़ा।

🔹 प्रतिबंध क्यों लगाया गया था?

पिछले सप्ताह नेपाल सरकार ने अचानक फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, एक्स (पूर्व ट्विटर), व्हाट्सएप समेत 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर पाबंदी लगा दी थी। सरकार का तर्क था कि ये कंपनियां नेपाल में पंजीकरण नहीं करा रही थीं और इन पर फर्जी खबरें, नफ़रत फैलाने वाला कंटेंट और फेक अकाउंट्स तेजी से फैल रहे थे।

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस कदम को “देश की सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द के लिए ज़रूरी” बताया था। लेकिन आम जनता, खासकर युवा पीढ़ी (Gen Z) ने इसे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मान लिया।

🔹 कैसे भड़के विरोध प्रदर्शन?

बैन लगने के तुरंत बाद ही हजारों युवाओं ने सड़कों पर उतरकर सरकार के फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया। काठमांडू और पोखरा जैसे बड़े शहरों में “Stop Corruption, Not Social Media” और “We Want Freedom” जैसे नारे गूंजने लगे।

युवाओं का कहना था कि सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन या चैटिंग का जरिया नहीं है, बल्कि यह उनकी राजनीतिक आवाज़, शिक्षा और आजीविका का भी हिस्सा है। कई छात्रों और नौकरीपेशा लोगों ने कहा कि ऑनलाइन कक्षाएं, छोटे कारोबार और सूचना का आदान-प्रदान इस बैन से ठप हो गया।

🔹 हिंसा में कैसे बदले प्रदर्शन?

विरोध प्रदर्शनों ने तब हिंसक रूप ले लिया जब हजारों प्रदर्शनकारी संसद भवन और सरकारी दफ्तरों के बाहर जमा हो गए। पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए पानी की बौछार, आंसू गैस और रबर बुलेट्स का इस्तेमाल किया। लेकिन हालात बिगड़ते चले गए और कई जगहों पर पुलिस ने गोलीबारी भी की।

इस गोलीबारी में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकांश युवा थे। वहीं, 300 से ज्यादा लोग घायल हुए जिनमें कई की हालत गंभीर बताई जा रही है।

सरकार ने राजधानी काठमांडू सहित कई जिलों में कर्फ्यू लागू कर दिया और सेना को भी अलर्ट पर रखा गया।

🔹 सरकार का यू-टर्न: बैन हटाया गया

बढ़ते जनदबाव और खून-खराबे को देखते हुए नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया बैन हटाने की घोषणा की। संचार मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा:

“हम जनता की भावनाओं का सम्मान करते हैं। सोशल मीडिया पर लगाया गया प्रतिबंध अब हटा लिया गया है। लेकिन आगे इन कंपनियों को नेपाल के कानूनों का पालन करना होगा।”

🔹 प्रधानमंत्री ओली का बयान

प्रधानमंत्री ओली ने हिंसा पर गहरा दुख जताया और मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इन घटनाओं में विदेशी शक्तियों और ‘स्वार्थी समूहों’ की भूमिका रही है।

सरकार ने मृतकों के परिवारों को मुआवज़ा देने, घायलों के लिए मुफ्त इलाज की व्यवस्था करने और 15 दिनों में एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित करने का ऐलान किया है।

🔹 जनता और विपक्ष की प्रतिक्रिया

विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा और कहा कि यह कदम लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला था। विपक्ष का कहना है कि अगर सरकार जनता की आवाज़ सुनने के बजाय दमन करती है, तो भविष्य में और बड़े आंदोलन खड़े हो सकते हैं।

वहीं, युवाओं ने इसे अपनी जनशक्ति की जीत बताया। सोशल मीडिया पर बैन हटते ही “We Won” और “Voice of Youth” जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।

🔹 अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने नेपाल सरकार के कदम की निंदा की और कहा कि यह नागरिक स्वतंत्रता का हनन था। संयुक्त राष्ट्र और कई पश्चिमी देशों ने भी संयम बरतने और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने की अपील की।

🔹 विशेषज्ञों की राय

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह पूरा घटनाक्रम नेपाल की राजनीति और शासन व्यवस्था के लिए एक बड़ा सबक है।

  • सरकार को यह समझना होगा कि डिजिटल युग में युवा पीढ़ी को चुप कराना नामुमकिन है

  • सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि यह लोकतांत्रिक विमर्श और नागरिक सहभागिता का अहम प्लेटफ़ॉर्म बन चुका है।

  • हिंसा और मौतों ने यह साफ कर दिया है कि संवाद और सहमति से बेहतर कोई विकल्प नहीं होता।

🔹 निष्कर्ष

नेपाल का यह सोशल मीडिया बैन और उसके खिलाफ हुआ विरोध सिर्फ एक प्रतिबंध की लड़ाई नहीं था, बल्कि यह युवाओं की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गया।

19 लोगों की जान चली गई, सैकड़ों घायल हुए, लेकिन इस पूरे आंदोलन ने यह दिखा दिया कि जनता की आवाज़ को लंबे समय तक दबाया नहीं जा सकता। सरकार ने बैन हटाकर यह तो मान लिया कि उसका फैसला गलत था, लेकिन सवाल यह है कि क्या भविष्य में ऐसे कदम दोबारा उठाए जाएंगे या नहीं?

संबंधित खबरें

Most Popular

HTML Snippets Powered By : XYZScripts.com