Nepal Gen-Z Protest: कुलमन घिसिंग का नाम उभरा अंतरिम पीएम के लिए, आंदोलन में बढ़ी दरार
Nepal Gen-Z Protest ने नेपाल की राजनीति को गहराई तक हिला दिया है। यह आंदोलन सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि युवाओं की नई सोच और पारदर्शी राजनीति की मांग का प्रतीक बन चुका है। आर्मी हेडक्वार्टर में हुई मीटिंग के बाद आंदोलन में दरार सामने आई है, क्योंकि कई युवाओं ने इस प्रक्रिया को लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया।
Nepal Gen-Z Protest क्यों खास है?
Nepal Gen-Z Protest की शुरुआत सोशल मीडिया बैन के खिलाफ हुई थी, लेकिन यह अब भ्रष्टाचार, पारदर्शिता और राजनीतिक दलों की नाकामी के खिलाफ एक बड़े विद्रोह में बदल गया है। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में छात्र, युवा पेशेवर और समाज के विभिन्न वर्ग शामिल हैं। उनका कहना है कि नेपाल को ऐसे नेतृत्व की ज़रूरत है जो न तो भ्रष्टाचार से जुड़ा हो और न ही पुरानी राजनीतिक पार्टियों के दबाव में काम करे।
कुलमन घिसिंग का नाम आगे क्यों?
Nepal Gen-Z Protest के दौरान कुलमन घिसिंग का नाम एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में सामने आया है। नेपाल बिजली प्राधिकरण (NEA) के पूर्व प्रमुख घिसिंग को उस प्रशासक के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने वर्षों से जारी “लोड-शेडिंग” खत्म कर नेपाल को रोशनी दी। उनकी साफ-सुथरी छवि और प्रभावी कार्यशैली युवाओं के लिए आशा की किरण मानी जा रही है।
अन्य संभावित नाम
हालांकि Nepal Gen-Z Protest में सिर्फ कुलमन घिसिंग ही नहीं, बल्कि कई और नाम भी चर्चा में हैं। इनमें पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम सबसे प्रमुख है। इसके अलावा काठमांडू के मेयर बलेन्द्र शाह और धरान के मेयर हार्का सम्पांग भी युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं। यह सभी नाम Gen-Z आंदोलन के भ्रष्टाचार-मुक्त और पारदर्शी राजनीति के सपने से मेल खाते हैं।
आंदोलन में दरार क्यों?
Nepal Gen-Z Protest के भीतर अब मतभेद उभरने लगे हैं। कुछ समूह मानते हैं कि आर्मी हेडक्वार्टर में हुई बैठक युवाओं की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करती है। उनका कहना है कि अगर नेतृत्व का चुनाव सेना या पुराने राजनीतिक ढांचे की दखल से होगा तो आंदोलन का असली मकसद खत्म हो जाएगा। वहीं, कुछ युवा मानते हैं कि देश में अस्थिरता और हिंसा को रोकने के लिए तुरंत नेतृत्व तय करना जरूरी है।
नेपाल की मौजूदा स्थिति
Nepal Gen-Z Protest के चलते देश में अस्थिरता गहराती जा रही है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं और संसद के कई हिस्सों में हिंसा और आगजनी की घटनाएं हो चुकी हैं। राजधानी काठमांडू में कर्फ्यू लगा दिया गया है और सेना ने स्थिति को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली है। अब पूरा देश इस बात पर नजरें गड़ाए बैठा है कि अंतरिम प्रधानमंत्री कौन होगा।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि Nepal Gen-Z Protest तभी सफल माना जाएगा जब अंतरिम प्रधानमंत्री का चुनाव पारदर्शिता और युवाओं की उम्मीदों पर खरा उतरे। अगर कुलमन घिसिंग जैसे नाम को समर्थन मिलता है तो यह नेपाल की राजनीति के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है। वहीं, अगर पारंपरिक राजनीति की ओर लौटने का दबाव बढ़ा, तो आंदोलन की असली भावना कमजोर हो सकती है।
निष्कर्ष
Nepal Gen-Z Protest नेपाल के इतिहास का एक अहम मोड़ है। यह आंदोलन बता रहा है कि युवाओं की आवाज अब अनदेखी नहीं की जा सकती। कुलमन घिसिंग और अन्य नामों के इर्द-गिर्द उठ रही बहस इस बात का संकेत है कि नेपाल अब बदलाव के कगार पर खड़ा है। आने वाले दिनों में यह तय होगा कि यह आंदोलन लोकतंत्र को मजबूत करेगा या फिर राजनीतिक अस्थिरता को और गहरा देगा।