Thursday, October 16, 2025
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यूरोप की एकजुटता: इज़रायल के खिलाफ 24 घंटे में चार देशों के बड़े फैसले, नेतन्याहू भड़के

यूरोप की एकजुटता ने इज़रायल के खिलाफ एक बड़ा राजनीतिक मोड़ ला दिया है। ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देकर इज़रायल की नीतियों की कड़ी आलोचना की। नेतन्याहू ने इस फैसले को “आतंकवाद को पुरस्कृत करना” बताया है। जानें वजह, प्रतिक्रियाएँ और इस विवाद का असर।

यूरोप की एकजुटता बनी इज़रायल के लिए नई चुनौती: चार देशों के फैसलों पर नेतन्याहू भड़के

यूरोप की एकजुटता क्यों अहम है? चार देशों ने उठाया बड़ा कदम

यूरोप की एकजुटता ने इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में एक नई सक्रिय भूमिका अर्जित की है। पिछले 24 घंटों में ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने आधिकारिक तौर पर फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी।

ये देश पारंपरिक रूप से इज़रायल के साथ सहानुभूति रखते आए हैं, लेकिन पिछले युद्ध, गाज़ा में मानवीय संकट, और दो-राज्य समाधान के दबाव ने उन्हें इस दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।

यूरोप की एकजुटता और नेतन्याहू की तीखी प्रतिक्रिया

इस यूरोप की एकजुटता के फैसलों के तुरंत बाद इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने ब्रिटेन की मान्यता को “आतंकवाद के लिए एक पुरस्कार” करार देते हुए कहा कि ये कदम फिलिस्तीन में हिंसा को बढ़ावा देंगे।

नेतन्याहू ने कहा कि ये देश “इतिहास के गलत पक्ष” पर खड़े हैं और इज़रायल को अन्तरराष्ट्रीय मोर्चों, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र में प्रतिकार करना होगा।

यूरोप की एकजुटता और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नया परिदृश्य

  • ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने कहा है कि गाज़ा में जारी मानवीय संकट और इज़रायल की सैन्य नीतियों ने इस कदम को अनिवार्य बना दिया है।

  • ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने भी अपनी-अपनी विदेश नीति को दो-राज्य समाधान की दिशा में फिर से खड़ा करने के संकेत दिए हैं।

  • पुर्तगाल ने मानवीय दृष्टिकोण का हवाला देते हुए कहा कि फिलिस्तीन मनुष्यों की बुनियादी आज़ादी से वंचित है और यह मान्यता जटिल राजनयिक स्थितियों का हिस्सा है।

यूरोप की एकजुटता: इज़रायल को मिल रही चुनौतियाँ

यह यूरोपीय कदम सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है — इसके कुछ ठोस राजनीतिक-आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव हो सकते हैं:

  • इज़रायल की अन्तरराष्ट्रीय वैधता पर प्रभाव: जब पश्चिमी और मित्र देशों का एक समूह फिलिस्तीन को राज्यमान्यता देता है, तो इज़रायल की नीतियों और संचालन पर अधिक दबाव बढ़ेगा।

  • सहायक राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर भी प्रभाव: कुछ देशों व संगठनों के बीच यह दबाव बनेगा कि वे भी यूरोप की एकजुटता के अनुरूप कदम उठाएँ।

  • आक्रामक विदेश नीतियाँ और परमाणु इज़रायल के समर्थक घटक: नेतन्याहू और उनके सहयोगियों के लिए यह “रक्षा” या “अपराधी अभियानों की आलोचना” के रूप में सामने आ सकता है।

यूरोप की एकजुटता और फिलिस्तीनी दृष्टिकोण

फिलिस्तीनी नेताओं ने इस कदम का स्वागत किया है:

  • फिलिस्तीन की ओर से कहा गया कि यूरोप की एकजुटता ने एक लंबे राजनीतिक संघर्ष को सही दिशा में मोड़ने का काम किया है।

  • यह मान्यता फिलिस्तीन को अन्तरराष्ट्रीय मंचों में और अधिक शक्ति व बोली देगा।

  • इस कदम से फिलिस्तीनी आम जनता में उम्मीद की एक नई किरण जगी है कि न्याय और अधिकारों की लड़ाई में उनका समर्थन बढ़ेगा।

यूरोप की एकजुटता: अन्य देशों और भविष्य की रणनीतियाँ

यह संभव है कि अभी और देश इस अभियान में शामिल हों:

  • यूरोपीय संघ के भीतर अन्य देशों पर दबाव होगा कि वे भी इसी तरह की मान्यता दें, या कम से कम सार्वजनिक रूप से इज़रायल की कार्रवाईयों की आलोचना करें।संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय अदालतों में इज़रायल की नीतियों की समीक्षा और सवाल बढ़ सकते हैं।

  • इज़रायल को राजनीतिक, कूटनीतिक और संभवतः आर्थिक बढ़ावा मिल सकता है, जैसे कि व्यापार प्रतिबंध, यात्रा प्रतिबंध आदि।

यूरोप की एकजुटता से नेतन्याहू की चुनौतियाँ

नेतन्याहू उपरोक्त फैसलों को चुनौती देते हुए:

  • उन्होंने इस मान्यता को आतंकवाद को पुरस्कृत करने वाला कदम बताया।

  • सरकार के भीतर, उन्हें ऐसे सहयोगियों से विरोध का सामना करना पड़ सकता है जो या तो अंतरराष्ट्रीय दबाव से चिंतित हैं या दो-राज्य समाधान की उपयुक्तता पर भरोसा करते हैं।

  • इज़रायल की सुरक्षा नीति, बस्तियों (settlements) का विस्तार, और पश्चिमी तट (West Bank) में नियंत्रण बनाए रखने की उसकी दृष्टि को अब और अधिक आलोचना का सामना करना पड़ेगा।

निष्कर्ष: यूरोप की एकजुटता का अर्थ और भविष्य

यूरोप की एकजुटता इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में एक निर्णायक मील का पत्थर है। यह राजनीतिक बयानबाज़ी से कहीं आगे जाकर अंतरराष्ट्रीय कानून, मानवाधिकार और न्याय की नई दिशा की ओर इशारा करता है।

नेतन्याहू का यह दावा कि ये निर्णय आतंकवाद को बढ़ावा देंगे, जितना नारा है, उतना ही आलोचना से भरपूर भी है। क्योंकि मान्यता का कोई भी कदम बिना बातचीत या शांति प्रक्रिया के महसूस किया जाए, वह मुश्किल से स्थायी होगा।

भविष्य में देखना होगा:

  • क्या और देश इस मोर्चे से जुड़ेंगे?

  • इज़रायल किस तरह से अपनी विदेश नीति और सुरक्षा दृष्टिकोण बदलता है?

  • इस एकजुटता का क्या असर वास्तविक शांति प्रक्रिया पर पड़ता है — क्या यह युद्ध विराम, बस्तियों रुकावट, मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अंतरराष्ट्रीय जांच आदि में वृद्धि करेगा?

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