कोलंबो, 22 अगस्त 2025 (Navchetna News):
श्रीलंका की राजनीति में शुक्रवार को बड़ा भूचाल तब आया जब देश के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को भ्रष्टाचार और गबन के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर सरकारी कोष से 1.7 करोड़ रुपये के गबन का आरोप है। इस गिरफ्तारी ने न केवल श्रीलंका की राजनीति में हलचल मचा दी है, बल्कि यह देश के लिए एक बड़े संवैधानिक और नैतिक संकट का संकेत भी देती है।
आरोपों की पृष्ठभूमि
श्रीलंका की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई (Commission to Investigate Allegations of Bribery or Corruption – CIABOC) ने लंबे समय से चल रही जांच के बाद यह कार्रवाई की। आरोप है कि विक्रमसिंघे ने अपने कार्यकाल के दौरान विदेश यात्राओं और व्यक्तिगत खर्चों के लिए सरकारी खजाने से अनियमित रूप से धन का उपयोग किया। यह राशि कुल मिलाकर 1.7 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
सूत्रों के अनुसार, जांच एजेंसियों को विक्रमसिंघे के आधिकारिक कार्यकाल के दौरान कई ऐसे दस्तावेज और लेनदेन मिले हैं जिनमें सरकारी अनुदान और अंतरराष्ट्रीय सहायता राशि का दुरुपयोग किया गया।
गिरफ्तारी की प्रक्रिया
आज सुबह कोलंबो में स्थित उनके निजी आवास पर छापेमारी की गई और कुछ घंटे की पूछताछ के बाद उन्हें हिरासत में लिया गया। गिरफ्तारी के बाद विक्रमसिंघे को विशेष अदालत में पेश किया गया, जहां उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
विक्रमसिंघे के वकीलों ने अदालत में कहा कि यह गिरफ्तारी राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है और उनके मुवक्किल निर्दोष हैं। वकील का कहना है कि आरोप निराधार हैं और वास्तविकता यह है कि सरकार उन्हें राजनीतिक रूप से समाप्त करना चाहती है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विक्रमसिंघे की गिरफ्तारी पर श्रीलंका की विपक्षी पार्टियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के वरिष्ठ नेताओं ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि यह कार्रवाई सरकार द्वारा विपक्ष को कमजोर करने का प्रयास है।
वहीं, सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने इस कदम का समर्थन करते हुए कहा कि यह कानून का राज स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम है। उनके अनुसार, भ्रष्टाचार चाहे किसी भी स्तर पर हो, उसे बख्शा नहीं जा सकता।
जनता का गुस्सा और विरोध प्रदर्शन
इस गिरफ्तारी की खबर सामने आते ही कोलंबो और अन्य शहरों में जनता ने प्रदर्शन शुरू कर दिए। कई जगहों पर UNP समर्थकों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और विक्रमसिंघे की तुरंत रिहाई की मांग की। कुछ स्थानों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भी हुईं।
श्रीलंका पहले ही आर्थिक संकट, महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहा है। ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति की गिरफ्तारी ने आम जनता के बीच राजनीतिक नेतृत्व पर विश्वास की कमी को और गहरा कर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विक्रमसिंघे की गिरफ्तारी को लेकर प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने श्रीलंका से न्यायिक प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी रखने की अपील की है। वहीं, पड़ोसी देशों ने इसे श्रीलंका का आंतरिक मामला बताते हुए टिप्पणी से बचा है।
श्रीलंका की राजनीति पर असर
यह गिरफ्तारी श्रीलंका की राजनीति में बड़े बदलाव की शुरुआत हो सकती है।
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पहला, इससे विपक्षी दलों में एकजुटता और सहानुभूति लहर पैदा हो सकती है।
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दूसरा, सत्तारूढ़ दल इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी सख्त नीति के सबूत के रूप में पेश करेगा।
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तीसरा, आम जनता का भरोसा एक बार फिर से राजनीतिक व्यवस्था की पारदर्शिता पर निर्भर करेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में श्रीलंका की राजनीति काफी अस्थिर रह सकती है। विपक्षी दल विक्रमसिंघे की गिरफ्तारी को हथियार बनाकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं।
निष्कर्ष
पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की गिरफ्तारी श्रीलंका की राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकती है। यह घटना न केवल भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक है बल्कि यह भी दर्शाती है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। हालांकि, क्या यह कदम वास्तविक न्याय की दिशा में उठाया गया है या फिर केवल राजनीतिक प्रतिशोध है, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।