जब डॉ. हेडगेवार को बताए बिना उन्हें बना दिया गया RSS का सरसंघचालक
जब डॉ. हेडगेवार को बताए बिना उन्हें बना दिया गया RSS का सरसंघचालक – यह वाक्य सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं बल्कि संघ की जड़ों और उसके संस्थापक की विनम्रता का प्रमाण है। 1925 में नागपुर की उस ऐतिहासिक बैठक ने भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास की धारा को बदलने का काम किया।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जो एक कुशल संगठनकर्ता और भारत माता के सच्चे सेवक माने जाते थे, को संघ की नींव रखने वाले कार्यकर्ताओं ने उनकी जानकारी के बिना ही RSS का पहला सरसंघचालक चुन लिया।
RSS की स्थापना और डॉ. हेडगेवार का दृष्टिकोण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन नागपुर में हुई थी। डॉ. हेडगेवार का सपना था कि एक ऐसा संगठन बने जो भारतीय संस्कृति, राष्ट्रवाद और समाज की एकजुटता को आधार बनाकर देश के युवाओं को राष्ट्र सेवा के लिए तैयार करे।
उनका मानना था कि स्वतंत्रता संग्राम केवल राजनीतिक लड़ाई नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी संघर्ष है।
जब डॉ. हेडगेवार को बताए बिना उन्हें बना दिया गया RSS का सरसंघचालक: घटना का विवरण
संघ की स्थापना के शुरुआती दिनों में एक छोटी सी बैठक बुलाई गई थी। उस समय सभी स्वयंसेवक इस पर चर्चा कर रहे थे कि संगठन का नेतृत्व कौन संभालेगा।
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अधिकांश स्वयंसेवकों की राय थी कि संगठन का नेतृत्व डॉ. हेडगेवार करें।
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लेकिन आश्चर्य की बात यह रही कि उन्हें इस निर्णय के बारे में शुरुआत में कुछ भी नहीं बताया गया।
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जब निर्णय सर्वसम्मति से लिया जा चुका, तब उन्हें सूचित किया गया कि अब आप संघ के सरसंघचालक हैं।
डॉ. हेडगेवार ने पहले संकोच किया, लेकिन स्वयंसेवकों के आग्रह और संगठन की आवश्यकता को देखते हुए उन्होंने जिम्मेदारी स्वीकार कर ली।
क्यों हुआ ऐसा?
जब डॉ. हेडगेवार को बताए बिना उन्हें बना दिया गया RSS का सरसंघचालक, इसके पीछे कई कारण थे:
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स्वयंसेवकों को भरोसा था कि केवल वही संगठन को सही दिशा दे सकते हैं।
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वे स्वभाव से अनुशासनप्रिय और दूरदर्शी थे।
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हेडगेवार जी पहले से कांग्रेस और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े थे, इसलिए उनके अनुभव का लाभ संघ को मिल सकता था।
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उनकी विचारधारा “राष्ट्र पहले” की भावना पर आधारित थी।
हेडगेवार की प्रतिक्रिया
जब उन्हें बताया गया कि अब वे RSS के सरसंघचालक हैं, तो उन्होंने विनम्रता से कहा:
“मैं कोई पद नहीं चाहता, मैं केवल संगठन का एक कार्यकर्ता हूं। लेकिन यदि आप सभी को लगता है कि यह मेरी जिम्मेदारी है, तो मैं इसे स्वीकार करता हूं।”
यही विनम्रता और संगठन के प्रति समर्पण उन्हें एक आदर्श नेता बनाती है।
RSS की संरचना की नींव
जब डॉ. हेडगेवार को बताए बिना उन्हें बना दिया गया RSS का सरसंघचालक, तभी से संगठन की संरचना को लेकर स्पष्ट दिशा तय हुई।
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उन्होंने शाखाओं की शुरुआत की।
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अनुशासन और गणवेश को अपनाया।
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संघ शिक्षा वर्ग (training camps) की परंपरा शुरू की।
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हर स्वयंसेवक को राष्ट्रहित सर्वोपरि रखने का संस्कार दिया।
RSS और स्वतंत्रता संग्राम
डॉ. हेडगेवार ने RSS की स्थापना के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया।
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1920 में उन्होंने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया।
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1930 में नमक सत्याग्रह में जेल भी गए।
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लेकिन बाद में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि स्वतंत्रता तभी स्थायी होगी जब समाज सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से एकजुट होगा।
जब डॉ. हेडगेवार को बताए बिना उन्हें बना दिया गया RSS का सरसंघचालक: प्रभाव
इस घटना का संघ और समाज दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
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स्वयंसेवकों में विश्वास बढ़ा कि संगठन लोकतांत्रिक और सामूहिक निर्णय पर आधारित है।
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हेडगेवार जी की सादगी और समर्पण ने उन्हें हर स्वयंसेवक के दिल में स्थान दिलाया।
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संघ ने राष्ट्र निर्माण को अपनी मुख्य धारा बनाया।
हेडगेवार का जीवन दर्शन
उनका जीवन दर्शन तीन मुख्य स्तंभों पर आधारित था:
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अनुशासन – हर कार्य समयबद्ध और नियमानुसार करना।
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राष्ट्रवाद – राष्ट्र सर्वोपरि है, बाकी सब उसके बाद।
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निस्वार्थ सेवा – बिना किसी पद या मान-सम्मान की इच्छा के काम करना।
आज के परिप्रेक्ष्य में महत्व
जब डॉ. हेडगेवार को बताए बिना उन्हें बना दिया गया RSS का सरसंघचालक, यह घटना आज भी प्रेरणा देती है।
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नेतृत्व हमेशा पद से नहीं, बल्कि सेवा और त्याग से मिलता है।
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संगठन की सफलता सामूहिक विश्वास पर निर्भर करती है।
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हेडगेवार जी का आदर्श आज भी संघ और उससे जुड़े संगठनों में झलकता है।
निष्कर्ष
जब डॉ. हेडगेवार को बताए बिना उन्हें बना दिया गया RSS का सरसंघचालक, तब से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सफर शुरू हुआ। यह केवल एक संगठन की कहानी नहीं बल्कि उस सोच की शुरुआत थी जिसने भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को नई दिशा दी। हेडगेवार का यह त्याग और समर्पण आज भी हर स्वयंसेवक के लिए प्रेरणा का स्रोत है।