श की न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आवास से संदिग्ध नकदी और दस्तावेज़ बरामद होने के मामले में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है।
मामला क्या है?
हाल ही में दिल्ली स्थित एक उच्च न्यायालय न्यायाधीश के आवास पर छापेमारी के दौरान प्रवर्तन एजेंसियों को भारी मात्रा में नकदी, सोने के आभूषण और कुछ महत्वपूर्ण कागजात मिले थे। इन बरामद वस्तुओं की वैधता पर सवाल उठने के बाद यह मामला सुर्खियों में आ गया।
जांच समिति का गठन
लोकसभा अध्यक्ष के निर्देश पर गठित समिति में वरिष्ठ सांसद और कानूनी विशेषज्ञ शामिल हैं। समिति को 30 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया है।
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उद्देश्य: मामले के सभी पहलुओं की जांच
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जिम्मेदारी: साक्ष्यों की सत्यता की पुष्टि और संबंधित एजेंसियों से समन्वय
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रिपोर्ट समयसीमा: 1 माह
राजनीतिक और कानूनी प्रतिक्रिया
इस घटना पर राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ विपक्षी नेताओं ने इसे “न्यायपालिका पर जनता के भरोसे को चोट” बताया है, जबकि सत्तापक्ष ने कहा कि “कानून से ऊपर कोई नहीं।”
पृष्ठभूमि
भारत में न्यायपालिका को अक्सर ‘लोकतंत्र का स्तंभ’ कहा जाता है। ऐसे मामलों में पारदर्शी और निष्पक्ष जांच न केवल संस्थाओं की साख बचाने के लिए ज़रूरी है, बल्कि यह जनता के विश्वास को भी मजबूत करती है।