स्वदेशी अभियान: पीएम मोदी की नई सोच पर RSS और स्वदेशी जागरण मंच की सहमति
स्वदेशी अभियान की नई परिभाषा: ‘पैसा नहीं, पसीना’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि अब स्वदेशी और विदेशी की पहचान केवल इस आधार पर नहीं होगी कि उत्पाद कहाँ से खरीदा गया है या किस कंपनी ने बनाया है। बल्कि असली पैमाना यह होगा कि उसमें भारतीय श्रमिकों का पसीना कितना बहा है। मोदी ने स्पष्ट किया कि यदि किसी प्रोडक्ट के निर्माण में भारतीय कामगारों का परिश्रम शामिल है तो वह हमारे लिए स्वदेशी है।
RSS और स्वदेशी जागरण मंच की प्रतिक्रिया
इस नई सोच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और स्वदेशी जागरण मंच (SJM) ने भी अपनी सहमति जताई। SJM के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि “प्रधानमंत्री का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है कि स्वदेशी अभियान अब केवल विदेशी कंपनियों का बहिष्कार करने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह भारतीय श्रमिकों के श्रम, कौशल और आत्मनिर्भरता को पहचानने का माध्यम बनेगा।”
स्वदेशी अभियान और आत्मनिर्भर भारत का संबंध
मोदी सरकार लंबे समय से आत्मनिर्भर भारत अभियान पर काम कर रही है। इसमें स्थानीय निर्माण, स्टार्टअप्स और MSMEs (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग) को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब स्वदेशी अभियान की इस नई परिभाषा ने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों को और मजबूत कर दिया है।
स्वदेशी अभियान और Make in India का भविष्य
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि “पसीना” पैमाना बनता है तो इसका सीधा फायदा भारत में रोजगार सृजन और लोकल उद्योगों को मिलेगा। भारतीय श्रमिकों का श्रम उत्पाद को स्वदेशी बनाएगा और यही आत्मनिर्भर भारत की असली ताकत बनेगी।
राजनीतिक और सामाजिक असर
प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद राजनीतिक हलकों में भी चर्चा तेज हो गई है। विपक्ष का कहना है कि यह केवल बयानबाज़ी है और असली स्वदेशी तभी होगा जब विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम होगी। वहीं समर्थकों का मानना है कि यह परिभाषा व्यवहारिक है और भारतीय समाज को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में और मजबूत करेगी।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्वदेशी अभियान की भूमिका
ग्रामीण भारत में हस्तशिल्प, कृषि आधारित उत्पाद और लोकल उद्योग पहले से ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं। यदि ‘पसीना’ पैमाना बनता है, तो इन क्षेत्रों को ज्यादा पहचान और बाज़ार मिलेगा।
निष्कर्ष: स्वदेशी अभियान का बदलता चेहरा
अब तक स्वदेशी का मतलब विदेशी उत्पादों का बहिष्कार माना जाता था। लेकिन मोदी की नई सोच और RSS की सहमति के बाद स्वदेशी अभियान का फोकस भारतीय श्रमिकों के श्रम और कौशल की पहचान पर होगा। यह बदलाव भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के साथ-साथ देश में रोजगार और आत्मनिर्भरता को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकता है।