Friday, October 17, 2025
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सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें: NDA से मांझी की 15 सीटों की बड़ी मांग

बिहार चुनाव 2025 से पहले जीतनराम मांझी ने NDA से 15 सीटों की मांग की। चेतावनी दी कि अगर मांग पूरी नहीं हुई तो उनकी पार्टी 100 सीटों पर उतरेगी।

सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें विवाद से NDA में हलचल

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें बयान ने NDA खेमे में हलचल मचा दी है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने गठबंधन नेतृत्व को साफ संदेश देते हुए कहा है कि उनकी पार्टी को कम से कम 15 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलना चाहिए। अगर यह मांग पूरी नहीं की गई, तो उनकी पार्टी राज्य में 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। यह बयान केवल एक दबाव की रणनीति नहीं, बल्कि बिहार की सियासत में नया मोड़ है।

क्यों अहम है सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें?

मांझी ने इस चुनाव में अपनी पार्टी के लिए एक बड़ा लक्ष्य तय किया है। उनका कहना है कि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) को अब मान्यता प्राप्त पार्टी बनाना है। चुनाव आयोग की गाइडलाइन के मुताबिक, किसी पार्टी को राज्य स्तर पर मान्यता पाने के लिए कम से कम 8 सीटों पर जीत या 6 प्रतिशत वोट शेयर की जरूरत होती है। इसी कारण वे 15 सीटों की मांग कर रहे हैं ताकि यह लक्ष्य हासिल हो सके।

उनका दावा है कि उनकी पार्टी का जनाधार हर विधानसभा क्षेत्र में मौजूद है। उन्होंने कहा कि लगभग हर सीट पर 10 से 15 हजार तक का वोट बैंक उनका है। ऐसे में अगर वे 100 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करेंगे, तो भी उनकी पार्टी प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने वाली नहीं है। यही कारण है कि सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें बयान को गंभीरता से लिया जा रहा है।

NDA में सीट शेयरिंग की पेचीदगियाँ

बिहार NDA में पहले से ही सीट बंटवारे को लेकर खींचतान है। बीजेपी और जेडीयू जैसे बड़े दलों के अलावा छोटे सहयोगी भी ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं। चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास), उपेंद्र कुशवाहा की RLSP और अन्य दल अपनी हिस्सेदारी के लिए दबाव बना रहे हैं।

इसी बीच मांझी का यह अल्टीमेटम NDA के लिए चुनौती बढ़ा रहा है। एक तरफ बीजेपी और जेडीयू बड़े दल होने के नाते ज्यादा सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ छोटे दल अपनी पहचान और अस्तित्व बचाने के लिए सीटों की मांग में आक्रामक रुख अपना रहे हैं।

सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें बयान का असर

  1. गठबंधन की मजबूती पर सवाल: NDA का पूरा चुनावी समीकरण सीट शेयरिंग पर टिका है। अगर मांगें पूरी नहीं हुईं तो गठबंधन में टूटफूट की आशंका है।

  2. बीजेपी और जेडीयू की दुविधा: उन्हें तय करना होगा कि मांझी की मांग मानें या अपने हिस्से में कटौती करें।

  3. विपक्ष के लिए मौका: महागठबंधन इस स्थिति का फायदा उठाकर छोटे दलों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर सकता है।

  4. मतदाताओं पर असर: मांझी का वोट बैंक दलित और महादलित समुदाय में मजबूत है। यदि वे अकेले मैदान में उतरे तो वोट बंट सकते हैं।

सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें: क्या यह दबाव की राजनीति है?

मांझी ने अपने बयान में कहा कि उनकी मांग दबाव की राजनीति नहीं है बल्कि वास्तविक स्थिति पर आधारित है। उन्होंने कहा कि NDA में रहते हुए वे सहयोग और सहमति चाहते हैं, लेकिन अगर पार्टी की स्थिति मजबूत बनाने का मौका नहीं दिया गया तो स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना ही एकमात्र विकल्प होगा।

उनका यह बयान साफ दिखाता है कि सीट शेयरिंग सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं है बल्कि अस्तित्व और राजनीतिक मान्यता का सवाल भी है।

NDA नेतृत्व की रणनीति

बीजेपी और जेडीयू को इस स्थिति से निपटने के लिए जल्द ही ठोस रणनीति बनानी होगी। अगर वे छोटे दलों की मांगों को नजरअंदाज करते हैं, तो गठबंधन कमजोर हो सकता है। वहीं अगर हर दल की मांगों को मान लिया जाए तो बड़े दलों की हिस्सेदारी कम हो जाएगी। यही असली पेचीदगी है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि NDA नेतृत्व मांझी को समझौते के लिए मनाने की कोशिश करेगा। संभव है कि 15 सीटों के बजाय उन्हें 10 से 12 सीटें दी जाएं और बाकी सीटों पर आपसी तालमेल बिठाया जाए।

विपक्ष की नजर सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें विवाद पर

महागठबंधन, जिसमें RJD, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां शामिल हैं, NDA की इस अंदरूनी खींचतान पर पैनी नजर रखे हुए है। विपक्षी खेमे का मानना है कि यदि NDA में तालमेल नहीं बैठा, तो यह उनके लिए बड़ा अवसर साबित हो सकता है।

अगर मांझी NDA छोड़कर अकेले लड़ते हैं, तो विपक्ष को सीधे तौर पर फायदा मिलेगा। दलित और महादलित वोटों में सेंध लग सकती है, जिससे महागठबंधन मजबूत स्थिति में आ सकता है।

निष्कर्ष: सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें से तय होगा भविष्य

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीट शेयरिंग मांझी 100 सीटें विवाद NDA के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। मांझी का यह बयान सिर्फ एक अल्टीमेटम नहीं बल्कि उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।

अगर NDA समय रहते इस विवाद का समाधान निकाल लेता है तो गठबंधन मजबूत होकर चुनाव मैदान में उतर सकता है। लेकिन अगर मांझी की मांगों को दरकिनार किया गया तो यह NDA की एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़े करेगा और चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है।

अभी सबकी नजर इस बात पर है कि बीजेपी-जेडीयू नेतृत्व इस चुनौती का समाधान कैसे निकालते हैं और क्या मांझी को उनकी मनचाही सीटें मिलती हैं या वे सचमुच 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर देंगे।

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