Friday, October 17, 2025
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दिल्ली क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स: कैसे काम करेगा यह, क्यों हो रहा है परीक्षण और क्या अपेक्षाएँ हैं

दिल्ली क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स के तहत दिल्ली सरकार, IIT कानपुर और IMD के सहयोग से आर्टिफिशियल रेन का पहला अभियान शुरू कर रही है। जानिए यह तकनीक कैसे काम करेगी, क्यों अब इस्तेमाल किया जा रहा है और क्या उम्मीदें हैं।

दिल्ली क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स: कैसे काम करेगा यह, क्यों हो रहा है परीक्षण और क्या अपेक्षाएँ हैं

दिल्ली क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स को लेकर राजधानी में एक अनूठा वैज्ञानिक प्रयोग शुरू होने जा रहा है, जिसका उद्देश्य है एक ‘आर्टिफिशियल रेन’ के माध्यम से हवा में मौजूद प्रदूषण को कम करना। इस प्रयास से पता चलेगा कि क्या कृत्रिम बारिश से अस्थाई राहत मिल सकती है।

क्लाउड सीडिंग क्या है और कैसे काम करती है?

क्लाउड सीडिंग, जिसे कृत्रिम वर्षा तकनीक भी कहते हैं, में बादलों में ऐसे पदार्थ मिलाए जाते हैं जो वर्षा को प्रोत्साहित करते हैं। आमतौर पर इसमें सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस, सोडियम क्लोराइड जैसे कणों का उपयोग होता है। जब ये पदार्थ बादलों में मिलते हैं, तो पानी के कण आस-पास एकाकार (condense) होकर बड़े बूँदों का निर्माण करते हैं, जो भारी हो जाने पर धरती पर वर्षा के रूप में गिरते हैं।

दिल्ली क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स में इस प्रक्रिया को हवाई मार्ग (modified Cessna विमान) से अंजाम दिया जाएगा। विमान बादल के नीचे उड़ान भरकर इन कणों का छिड़काव करेगा, जिससे वर्षा को प्रारंभ करने की संभावना बढ़ेगी।

क्यों अब, और क्यों दिल्ली?

दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। लगातार उच्च पीएम2.5 और पीएम10 स्तरों के चलते स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखा गया है। इसे देखते हुए, राजधानी में क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स को एक तात्कालिक उपाय के तौर पर अपनाया जा रहा है, जिससे प्रदूषक कणों को हवा से हटाया जा सके।

प्रोजेक्ट की कुल लागत ₹3.21 करोड़ है, जिसमें केवल एक ट्रायल की व्यवस्था पर ₹55 लाख खर्च होंगे, जबकि उपकरण और लॉजिस्टिक्स के लिए ₹66 लाख रखे गए हैं। परीक्षण IIT कानपुर द्वारा वैज्ञानिक रूप से नियंत्रित और IMD-पुणे की सलाह पर किया जा रहा है।

पिछले समय से जुड़ी चुनौतियाँ

इस ट्रायल का पहला शेड्यूल 4–11 जुलाई 2025 के लिए निर्धारित था, लेकिन मॉनसून के पहले ही सक्रिय प्रवाह के कारण इसे स्थगित कर दिया गया। विशेषज्ञों के सुझाव से यह विंडो अब अगस्त-अंत से सितम्बर की शुरुआत तक के लिए पुनः निर्धारित की गई है, जब बादल और नमी की संरचना अधिक अनुकूल होती है।

क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स का कार्यान्वयन

दिल्ली सरकार ने इस प्रयोग के लिए कई मंजूरियाँ ली हैं। DGCA सहित 13 से अधिक एजेंसियों से अनुमति ली जा रही है। प्रत्येक परीक्षण लगभग 90 मिनट की फ्लाइट होगी जो लगभग 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करेगी।

उड़ानें दिल्ली के सीमांत क्षेत्र जैसे रोहिणी, बवाना, अलीपुर और बुराड़ी में ही की जाएंगी, जबकि संवेदनशील इलाकों जैसे लुटियंस ज़ोन और IGI एयरपोर्ट के पास उड़ान नहीं भरी जाएगी।

CAAQMS मॉनिटरिंग स्टेशन PM2.5 और PM10 स्तरों में प्रभाव की वास्तविक समय पर निगरानी करेंगे।

क्या उम्मीदें हैं और विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

क्लाउड सीडिंग से आमतौर पर बैराज बढ़ाने या वर्षा में लगभग 5–15% तक वृद्धि की उम्मीद की जाती है, यदि अन्य मौसमीय परिस्थितियाँ अनुकूल हों।

हालांकि यह तकनीक प्रदूषण का दीर्घकालीन समाधान नहीं है, लेकिन व्यापक राहत देने में प्रभावी साबित हो सकती है।

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि क्लाउड सीडिंग को एक मैचट_RECOVERY नहीं माना जाना चाहिए। जड़ से समस्या का समाधान करने के लिए सार्वजनिक परिवहन, उद्योग नियमन, और कृषि क्षेत्र में सुधार आवश्यक है।

निष्कर्ष

दिल्ली क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स दिल्ली सरकार की एक महत्वाकांक्षी और वैज्ञानिक पहल है। यह प्रदूषण से राहत पाने की दिशा में एक नया कदम है, जो डेटा और मौसम संगत परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

यह ट्रायल साबित कर सकता है कि क्या कृत्रिम वर्षा तकनीक वायु की गुणवत्ता सुधारने में प्रभावी है, और साथ ही यह इस दिशा में भविष्य की तैयारियों को मार्गदर्शित करेगा।

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