पंजाब बाढ़ 2025 ने राज्य के हालात बदतर कर दिए हैं। 12 जिले जलमग्न हो गए हैं और करीब 3 लाख लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। चंडीगढ़ सहित पूरे राज्य में प्रशासन राहत कार्यों में जुटा है, लेकिन हालात अभी भी गंभीर बने हुए हैं।
पंजाब इस समय भीषण बाढ़ संकट से जूझ रहा है। लगातार हो रही भारी बारिश और नदियों के उफान ने राज्य के 12 जिलों में जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। प्रशासन के अनुसार अब तक लगभग 3 लाख लोग अपने घर छोड़ने पर मजबूर हो चुके हैं। हजारों एकड़ फसलें बर्बाद हो गईं, सड़कें टूट गईं और कई गांव पूरी तरह से जलमग्न हो गए। राहत एवं बचाव कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है, लेकिन हालात अभी भी सामान्य होने से काफी दूर हैं।
प्रभावित जिले
बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में फिरोजपुर, होशियारपुर, रूपनगर, जालंधर, फरीदकोट, कपूरथला, मोगा, पटियाला, अमृतसर, तरनतारन, लुधियाना और संगरूर शामिल हैं। इन इलाकों में न केवल ग्रामीण बल्कि शहरी क्षेत्र भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। कई जगहों पर पानी 6 से 8 फीट तक भर गया है, जिससे लोगों को नावों और ट्रैक्टरों के सहारे सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया जा रहा है।
प्रशासन और सेना की तैनाती
राज्य सरकार ने सेना और NDRF (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) की टीमें राहत एवं बचाव कार्यों में लगाई हैं। अब तक हजारों लोगों को सुरक्षित निकाला गया है और 1000 से अधिक राहत शिविर बनाए गए हैं। मुख्यमंत्री ने केंद्र से आर्थिक मदद की अपील की है और आश्वासन दिया है कि प्रभावित लोगों को हर संभव सहायता प्रदान की जाएगी।
5 कारण जिनसे मची इतनी बड़ी तबाही
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लगातार और असामान्य बारिश
इस बार मानसून ने रिकॉर्ड तोड़ बारिश की है। मौसम विभाग के मुताबिक, पंजाब में औसत से 60% ज्यादा वर्षा दर्ज की गई। अचानक हुई भारी बारिश से नदियां और नाले उफान पर आ गए। -
सतलुज और ब्यास नदियों का उफान
हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में हुई भारी बारिश का असर पंजाब पर भी पड़ा। सतलुज और ब्यास नदियों में पानी का स्तर खतरनाक सीमा से ऊपर चला गया, जिससे कई बांधों से पानी छोड़ना पड़ा और निचले इलाकों में बाढ़ आ गई। -
कमजोर जल निकासी व्यवस्था
राज्य के कई हिस्सों में नालों और ड्रेनेज सिस्टम की सफाई समय पर नहीं की गई। इससे बारिश का पानी शहरों और गांवों में तेजी से भर गया और हालात बेकाबू हो गए। -
कृषि भूमि और रिहायशी क्षेत्रों का जलमग्न होना
पंजाब की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है। बाढ़ के कारण धान, मक्का और कपास की खड़ी फसलें चौपट हो गईं। ग्रामीण इलाकों में खेत जलमग्न होने से हजारों परिवारों को घर छोड़कर शरण स्थलों पर जाना पड़ा। -
जलवायु परिवर्तन और असंतुलित विकास
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस साल मानसून का पैटर्न बदला है। साथ ही, अव्यवस्थित शहरीकरण, नदियों के किनारे अतिक्रमण और जंगलों की कटाई ने बाढ़ की मार को और भी बढ़ा दिया।
लोगों की दिक्कतें
बाढ़ प्रभावित इलाकों में पेयजल, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं का संकट गहराता जा रहा है। बीमारियों के फैलने का खतरा है। कई लोग अब भी अपने घरों की छतों और ऊंची जगहों पर फंसे हुए हैं। राहत सामग्री समय पर नहीं पहुंच पाने से परेशानियां और बढ़ गई हैं।
सरकार की चुनौतियां
राज्य सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है – प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाना और लंबे समय के लिए पुनर्वास की व्यवस्था करना। फसल और संपत्ति के भारी नुकसान से राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ने की आशंका है।
निष्कर्ष
पंजाब की यह बाढ़ सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि चेतावनी भी है कि समय रहते उचित नीतियां और ठोस जल प्रबंधन व्यवस्था नहीं अपनाई गई तो भविष्य में हालात और गंभीर हो सकते हैं। अब जरूरत है कि सरकार, विशेषज्ञ और समाज मिलकर ऐसी रणनीति बनाएं जिससे आने वाले सालों में इस तरह की तबाही से बचा जा सके।